________________ सेठियाजैनग्रंथमाला सेठ रहता था। उसकी बेटी का नाम नागवसु था। किसी समय नागवसु ने नागदत्त को देख कर सोचा- इन्द्र के समान पराक्रम बाला यह कौन होगा? ऐसे गुणी और सुन्दर पति के विना स्त्री का जीवन बकरी के गलेके स्तन के समान व्यर्थ है। इस लिये इस जिन्दगी में इस को ही पति बनाऊंगी,अन्य किसी को नहीं / अगर ऐसा न होसका तो दीक्षा ले लूंगी। इस प्रकार मन में दृढ़ निश्चय करके वह घर आई, परन्तु उसका जी किसी काम में न लगा। उसे न भोजन की सुध थी न निद्रा की परवाह-- रात दिन नागदत्त ही की चिन्ता में मग्न रहने लगी। जब उसके माता पिता को उसकी दशा का ज्ञान हुआ तो वे बड़े दुखी हुए / आखिर उनके अत्यन्त आग्रह करने पर नागवसु की सखी ने बताया कि यह नागदत्त के साथ पाणिग्रहण करने की प्रार्थना करती है। पिता ने पुत्री का अभिप्राय जानकर नागदत्त के पिता से प्रार्थना की और कहा-"नागवसु और नागदत्त की अच्छी जोड़ी है, इस सम्बन्ध को आप स्वीकार करें"। एक दिन किसी कोटपाल ने नागवसु को देखा,वह उस पर मोहित होगया / कोटपाल ने नागवसु