________________ [44] सेठियाजैनग्रन्थमाला पूर्ण करके लौट आई। नाई यह देख कर सोचने लगा, अरे! ये स्त्रियां कितनी निडर हैं ! इनका साहस कैसा विचित्र है ! दूसरे दिन जब सेठ सो गया तो नाई उस लक्कड़ की पोलमें घुस रहा / सदा की भांति स्त्रियां रत्नद्वीप पहुँची / नाई ने भी जाकर वहाँ से कुछ रत्न बटोरे और स्त्रियों का हाल मालूम करके पहले ही आकर लकड़ की पोल में घुस गया / पश्चात् स्त्रियां लक्कड़ पर सवार हुई और घर आ पहुँची। नाई ने जो रत्न उठाये थे, वे बहुत कीमती थे। उसके पास बहुत धन होगया ; इसलिए उसने आकर रोज़ 2 सागर सेठ की चाकरी करना छोड़ दिया। एक दिन नाई आया। सेठ ने बहुत दिनों बाद आया देख उसे उलाहना दिया। लेकिन नाई लोग तो पहले नम्बरके धूर्त होते हैं-कुछ बहाना बनाकर उसने अपना रत्न दिखाया। सेठ रत्न देख कर बोला- मूर्ख! तू ने यह रत्न कहां पाया ? नाई ने उत्तर में आदि से लेकर अन्त तक का सब वृत्तान्त कह सुनाया। सेठ लोभी था, इस कारण पतोहों की उच्छृखल प्रवृत्ति से उसे दुख न हुआ, पर रत्न पाने की तीव्र लालसा उसके मन में जाग उठी। दूसरे दिन वह नाई की नाई पोल