________________ [24] सेठियाजैनग्रंथमाला पाठ दसवाँ. दामन्नक की कथा / गजपुर नगर में सुनन्द नामक कुलपति रहता था। वह एकवार अपने मित्र जिनदास के साथ जंगल की सैर करने गया / वहां उसे धर्माचार्य के दर्शन हुए। उस ने उन्हें वन्दना की। धर्माचार्य ने अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। उसे सुनकर सुनन्द बोला- मैं हिंसाका त्याग तो कर दं,पर कुलधर्म कैसे छोड़ सकता हैं ? आचार्य ने कहा- "धर्म का ही आचार सच्चा आचार है, धर्माचार के सामने कुलाचार की कुछ भी कीमत नहीं है / कुलाचार या रूढ़ियों का पालन करने के लिये धर्माचार में बाधा नहीं देनी चाहिए। मतलब यह है कि धर्म विरुद्ध व्यवहार का त्याग करना आवश्यक है"। प्राचार्य का उपदेश सुनकर सुनन्द ने लौकिक आचार की परवाह न कर अहिंसा-धर्म को ग्रहण कर लिया। दुर्भाग्य से देश में दुष्काल पड़ा। अन्न के लाले पड़ गये / सुनन्द की स्त्री ने मछलिया मार कर लाने को कहा, पर सुनन्द न माना। अन्त में उसकी स्त्री