________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा [23] बाहु-दण्ड से विचलित नौका निर्बल नर की खेते हैं / दुर्लभ व्यक्ति वही अवनी के आतप हर सुख देते हैं। आने पर अवकाश कहीं जो सुख से कभी न सोते हैं। बसुधा भर में बीज प्रेम का प्रमुदित होकर बोते है। निज पर के झंझट में पड़कर काल न अपना खोते हैं। उन्नति शील वही जन जग के नागर नेता होते हैं / परम पिता परमेश्वर ही के गुणगण केवल गाते हैं। माता पिता बन्धु भगिनी के गिनते झूटे नाते हैं / भ्रातृ-भाव से मनुज भात्र को सरल सुपन्ध दिखाते हैं / वे ही विज्ञ भक्त ईश्वर के पुण्य परम पद पाते हैं // (पद्यप्रदीप ) पाटा-- परस्त्री 12 - श्री सागर--- समुद्र अचला पृथ्वी नेता-मुखिया. बाहद गटजदगड, मुजा रूपी इंटा अवनी-पृथ्वी अवकाश--फुर्सत, छुट्टी वसुधा-- पृथ्वी प्रमुदित--प्रसन्न, खुश.