________________ [2] सेठियाजैनग्रंथमाला अभिमत फलों का श्राप जिनवर! दान देते थे सदा, अज्ञानियों को मान-पूर्वक ज्ञान देते थे सदा। क्या कल्पतरू या कामधुक से ज्ञान मिलता है कहीं , इस हेतु दानी अापके सम विश्व में कोई नहीं / (4) लख ध्यान में स्थित ग्राप पर छोड़े खलोंने श्वान भी, थे काट कर वे आपका करते रुधिर कापान भी। फिर नोन छिड़का आपके क्षत पर यवन-गण ने विभो तो भी न छूटा ध्यान प्रभु का जय महावीर प्रभो! समता सुगमता से सभी को साथ रखते आप थे सब को दया-दृग से सदा जिनदेव! लखते आप थे वय-ताप से संतप्त जन सुखिया किए प्रभु आपने करके कृपा सब को स्वयं अपना लिये प्रभु आपने। सर्वत्र हत्याकाण्ड का ताण्डव यहां होता रहा, आलस्य मद से मत्त हो भारत पड़ा सोता रहा / हत्या उपद्रव को मिटाया आपने आकर यहां, . तन्द्रा मिटी प्रभु! आपके आदेश को पाकर यहां //