________________ सेठियाजैनग्रथमाला और चकित होकर घरमें घुसा। उस मित्रने मूर्तिको उठा कर,उसकी जगह मायावी मित्र को बैठाकर बन्दरों को छोड़ दिया। बन्दर उस आये हुए आदमी को मूर्ति समझ , सदा की भाति उसके ऊपर कूदने लगे। तब वह बोला - मित्र ! यही दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। देखो तुम से कैसा अपनापन दिखलाते हैं ।मायावी बोलामित्र! मनुष्य अचानक ही क्या बन्दर हो जाते हैं? वह बोला-"हां आपके दुर्भाग्य से ! नहीं तो क्या सोना कोयला हो सकता है?''मित्र!अपने दुर्भाग्यसे जब सोना कोपला होगया तो मनुष्य बन्दर क्यों नहीं हो सकता? मायावी ने सोचा- अवश्य ही इसने हमारी सब कार्यवाही जान ली है। यह सोचकर उसने राजदण्ड के भय से सब बातें कह सुनाई और आधा हिस्सा दे दिया। दूसरे ने भी उसके लड़के उसे लौटा दिये। . बालको : हमें चाहिए कि हम कभी इस प्रकार की बेईमानी न करें। यदि वह मायावी अन्त तक सच हाल न कहता तो शायद उसके लड़के उसे न मिलते / तथा दंड भोगता,मित्रको खो देता और बदनाम होता।