________________ हिन्दी--बाल-शिक्षा पाठ मातवाँ अकबर प्रसिद्ध अवुल मुज़फ्फ़र जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर हुमायूँ बादशाह का बेटा था। वह ईस्वी सन् 1542 में जन्मा और साढ़े तेरह वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठा था। यह बादशाह और और मुसलमान बादशाहों की तरह धर्मान्ध नहीं, किन्तु उदार हृदय था। कहते हैं उसने सब धर्मा को जाना और जांचा था। किन्तु जैनधर्म ने उसे बहुत प्रेम था / “अहिंसा धर्म'' उसकी रग रग में व्याप्त था। वह जैनाचार्य जगदगुरु श्री हीरविजय को अपना गुम समझता था। उनी ने उन्हें 'जगदगुर.' की उपाधि प्रदान की थी। एक बार बादशाह लाहार मंथा।जैन मुनि शान्तिचन्द्र जी भी लाहोर में थे। ईद से एक दिन पहले उन्होंने कहा-"आज मैं यहां से जाऊंगा"। बादशाह उनका बहुत सत्कार सन्मान करता था। उसने कारण पूछा तो उन्होंने कहा-"कल हज़ारों ही नहीं,बल्कि लाखों जीवों का बध होने वाला है। इससे मेरा अन्तःकरण दुखी होता है / फिर उन्होंने मुसलमानों के धर्मग्रन्थ कुरानशरीफ़ की आयतों से यह बताया कि