________________ [4] सेठियाजैनप्रथमाला पाठ दूसरा नारायण की परीक्षा (1) पहले स्वर्ग में बत्तीस लाख विमान हैं / उसमें सुधर्मा नाम की एक सभा भी है। इससे वह स्वर्ग सौधर्म स्वर्ग और वहां का इन्द्र सौधर्म इन्द्र कहलाता है / एक दिन सौधर्म इन्द्र सभा में बैठा था / देव लोग उसकी सेवा चाकरी बजा रहे थे। इसी समय पुरुषों की समालोचना शुरूहुई / इन्द्र बोले-" श्री. कृष्ण महाराज बहुत दोषों वाली वस्तु के भी गुण ही ग्रहण करते हैं / दोषों पर लेश मात्र भी ध्यान नहीं देते"इन्द्र द्वारा की हुई श्रीकृष्ण की प्रशंसा एक देव को सहन नहीं हुई / वह उनकी परीक्षा करने चला। जिस हत्याकाण्ड-हत्याएँ. ताण्डव-नाच. तन्द्रा-ऊंघ (आध्यात्मिक प्राधिदैविक और आधिभौतिक अथवा शारीरिक मानसिक और बाह्य कारणों से पैदा होने वाला) पीयूष-अमृत. हत्ताप- हृदय का संताप.