________________ (36) सेठियाजैनग्रन्थमाला उस तालाब के पानी के ऊपर काई ऐसी जम गई थी, जैसे किसी ने चमड़े से मढ़ दिया हो / तालाब में एक कछुपा रहता था। उसका बड़ा परिवार था। लड़के थे और लड़कों के लड़के भी। एक दिन वह अपनी गर्दन को ऊँचा करके चक्कर लगा रहा था। इतने ही में हवा चलने के कारण काई कुछ सिकुड़ गई और आकाश में चन्द्रमा और तारे दिखाई दिये। वे उसे बड़े अच्छे लगे। उसने सोचा-यह तमाशा * अपने बाल पच्चों को भी दिखा दूं। यह सोचकर वह अपने कुटुम्य वालों के पास गया और उन्हें बुला लाया। किन्तु इतने ही में काई फिर छा गई थी। कछुए ने बहुत यत्न किया कि वह तमाशा फिर एक चार दिखाई देवे, लेकिन फिर नज़र न आया। सब है-गया समय फिर हाथ नहीं आता। पालको! जो समय चल जाता है वह फिर कभी वापस नहीं आता इमलिए अपना एक भी क्षण व्यर्थ न जाने देना चाहिए।