________________ शिक्षकों से निवेदन 1 शिक्षक का पद धार्मिक, नैतिक या सामाजिक दृष्टि सेप्रत्येक दृष्टि से-अत्यन्त गौरवशाली अतएव उत्तरदायित्व पूर्ण है / वे विद्यार्थियों की जीवननौका के कर्णधार हैं। वे चाहें तो वह सफलता पूर्वक किनारे लग सकती है, न चाहें तो मैंझधार में डूब जायगी। इसलिए शिक्षकों का कर्तव्य है कि केवल पुस्तकें पढ़ना या पठित पाठ को लिख लेना हीन समझाकर प्रत्येक पाट को हृदय(तात्पर्य)को बच्चों के हृदय में मिला दें-एकमेक करदें। _ 2 क्रूर व्यवहार से जो सदाचार की शिक्षा बच्चों को दी जाती है, उसका असर अस्थाई होता है / वे जब तक आँखों के सामने रहते हैं, डर के मारे सदाचारी से बने रहते हैं / पीठ पीछे उसकी पर्वा नहीं करते / आवश्यकता इस बात की है कि बच्चे अपना कर्तव्य समझकर सदाचार का पालन करें, इस प्रकार प्रेम से उन्हें शिक्षा दी जाय। __3 जब एक पाठ पढ़ावें तो उसले सम्बन्ध रखने वाले भिन्नर उदाहरणों से बह पाठ अच्छा रोचक बना देवें, जिससे शिष्य का जी बरम्बार पाठ की ओर आकर्षित होवे। 4 पुस्तक में संयुक्त अक्षरों के एक 2 दो 2 नमूने मात्र हैं। शिक्षक महोदय का कर्तव्य है कि उनके अतिरिक्त दुसरे 2 अक्षर भी साथ साथ बताते जावें, जिससे शिष्यों की योग्यता बढे और आगे के लिए सरलता हो जावे। 5 पुस्तक की कविताएँ प्रायः सभी कण्ठ करने योग्य हैं। किन्तु कण्ठ करना अनिवार्य नहीं है। पात्र देखकर अध्यापक का कर्तव्य है कि कण्ठ करने न करने का निर्णय कर लेवें।