________________ (30) सेठियां जैन प्रन्थमाला को तोल का अपने शरीर कामांस निकाल कर दे दीजिये"राजा ने उसका कहा मान लिया। उसने सोचाअाखिर शरीर कभी न कभी जुदा हो ही जायगा। यह हमेशा साथ नहीं रहेगा / नाश होने वाली चीज़ से ऐसा धर्म कमाना चाहिए जिसका कभी नाश नहीं होता। बस, फिर क्या था, उसने छुरी मंगा कर तराजू पर अपना मांस काट 2 कर चढ़ाया। पर देवयोग से तराजू का पलड़ानीचान हुआ, तब राजा आश्चर्य में आकर खुद पलड़े में बैठ गया। और बोला- "मैं भले ही मर जाऊं पर कबूतर को न मरने दूंगा"। उसकी ऐसी अटल धीरज देख दोनों 'देवता बहुत प्रसन्न हुए और राजा के चरणों में पड़ कर माफी मांगने लगे / राजा इस महान् पुण्य के कारण दूसरे ही भवमें शान्तिनाथ नामक तीर्थकर हुए। दूसरों का भला करें। दया धर्म को मूल है, दयाधर्म की खान / . तातें सबसम्पति मिलें, अरु पावै निरवान।