________________ नीति-शिक्षा-संग्रह 86 आत्महितेच्छुओंको गुरु और माता पिताके वचनका , अनादर करके, उत्सवको छोड़कर, रुदनको सुनकर, लड़के को रोता हुवा रख कर, हत्या करके, मैथुन सेवन करके,क्लेश करके,दूधको पीकर और चौरी करके परदेश गमन करना उचित नहीं है. .. 60 अनाचारी, अन्यायी, अभिमानी. मूर्ख, कायर, दयाहीन और दुष्ट; इनको कदापि स्वामी न बनाना चाहिये। 61 मनुष्यों को पर धन हरण करने में पगलके समान, अन्यकी कान्ता को कुदृष्टिसे देखने में अंधेके सदृश, पर निन्दा करने में मूकके माफिक और परके अवगुणोंको सुनने में बहरेके तुल्य होना चाहिये. 62 विवाहित स्त्रियों को चाहिये कि पिताके घर पर अधिक न ठहरे, पुरुषोंको ससुराल में विशेष निवास करना बेजा है, भौर योगिओंको एक जगह पर अधिक स्थिरता करना योग्य नहीं है. 63 रोगी, वृद्ध, बालक, मूर्ख, दरिद्री, क्रोधी दुर्गुणी दुराचारी अकुलीन, और वैरागी; इतने को कन्यादान न देना चाहिये. 64 नीचा देखकर चलने से धनप्राप्ति, जीवदया, देहरक्षा प्रमुख गुणों की प्राप्ति होती है, 65 जिसके साथ सगाई कर दी हो, यदि वह लापता (गुम) रहे या कालकवलित हो जाय, दीक्षित हो जाय, दीक्षा का अभिलाषी हो, नपुंसक हो, या खतर नाक रोग हो जाय, अथवा जाति