________________ नीति-शिक्षा-संग्रह समझता, अपकीर्ति से अपने को बचाना, भलमंसी से चलना और अच्छी बातों में सदा रत रहना, इन पांच बातों का जो ध्यान रक्खेगा वह चाहे जहां जावे, उसका मनोरथ सिद्ध हो जायगा और प्रायः सभी लोग उस के पक्ष में हो जायेंगे / 62 अहंकारी, क्रोधी, रोगी,प्रमादी ओर कुव्यसनी मनुष्य, धर्म और ज्ञान नहीं पाता है। 63 आलस, स्त्रियों से अधिक प्रेम, सदा रोगी रहना, अतितृष्णा, उन्माद और भय, इन छह बातों से आदमी अपने कारबार में उन्नति नहीं कर सकता। 64 ऐ आत्मन् ! करुणासमान दूसरा कोई अमृतरस तथा परद्रोह समान दूसरा कोई हालाहल-जहर नहीं है / संतोष समान दूसरा कल्पवृक्ष और लोभ समान दूसरा दावानल नहीं है / सदाचरण समान कोई प्रियमित्र और क्रोध समान कोई शत्रु नहीं है इसलिए अपने हिताहित का विचार कर जो तुम्हें रुचे उस को ग्रहण करो। 65 कदाचित् मंत्रतंत्रादि से पर्वत की शिला बहुत काल तक आकाश में निराधार लटक भी जाय, दैवानुकूल होने पर कदाचित् भुजाओं से समुद्र पार भी करलिया जाय, और दिन दहाड़े भी कदाचित् तारे दिखाई पड़ जायँ, लेकिन हिंसा से कभी किसी का कल्याण न हुआ ही है और न होना ही संभव है /