________________ [38] सेठियाजैन ग्रन्थमाला 304 मौज शौक़ के लिये नहीं, किन्तु धर्म और मरमार्थ के लिए शरीर का स्वास्थ्य कायम रखना प्रावश्यक है, क्योंकि जिसका शरीर स्वस्थ होता, उसी का मन स्वस्थ रह सकता है। 305 एकवार के भोजन के पूरे 2 पचने से पहिले दूसरी बार भोजन कर लेना, रोगों को आमं त्रण देने के बराबर है। 306 पांचों इन्द्रियों को स्वतन्त्र करना आपत्ति का द्वार खोलने के बराबर है। 307 धर्म कल्पवृक्ष है, मोक्ष और अन्यदय ये दोनों उसके फल हैं, मैत्री, प्रमोद, करुणा, और माध्यस्थ्य (उपेक्षा) ये चार भावनाएँ उस का मूल हैं, विना मूल शाखा नहीं होती और विना शाखा के फल नहीं होते; अतः यदि मोक्ष रूपी फल प्राप्त करना हो, तो भावना रूप मूल को मजबूत बनाओ। 308 प्यास के समय विना भूख न खाना चाहिए और भूख के समय विना प्यास पानी न पीना चाहिए।