________________ निवेदन -98er जैन विद्यार्थियों की प्रारभिक हिन्दी पढ़ाई के लिए उपयोगी पाठ्यपुस्तकों का अभाव-सा देखकर हमने हिन्दी-बालशिक्षा नामक एक सीरीज़ निकालने का निश्चय किया था। निश्चय के अनुसार हिन्दी बालशिक्षा के पाँच भाग तैयार हो चुके हैं। इधर प चवें भाग के तैयार होते न होते ही प्रथम भाग और दुसरा भाग लगभग एक साल में ही समाप्त हो चुके अतः उनकी दुसरी आवृत्ति करना आवश्यक होगया / प्रथम भाग की दूसरी श्रावृत्ति में बालकों के मनोरंजन के लिए चित्रों की संख्या बढ़ा दीगई है। ___ दूसरे भाग में अब की बार बहुत- सा परिवर्तन हो गया है / जब हमने देखा कि समाज ने इन भागों को प्रेम के साथ अपनाया है, तो हमारा जी और भी उपयोगी बनाने के लिर लालायित हुा / तदनुसार अब की बार संयुक्त अक्षर खूब विस्तार के साथ लिखे गये और कई नये पाठ और कविताएँ भी मिला दी गईं। जिनके पास पहिली आवृत्ति की पुस्तके बची होंगी, वे दूसरी आवृत्ति की पुस्तकें मँगाकर साथर विद्यार्थियों को पढ़ाना चाहेंगे तो उन्हें थोड़ीसी हानि होगी, पर उनसे हमारा निवेदन है कि बालकों के अधिक लाभ के सामने नगण्य हानि का खयाल न करें।