________________ सेठियाजैनप्रन्यमाला 85 मनुष्य अपना मनोरथ सिद्ध करने के लिए संतोष और धीरज धारण करे; क्योंकि काम समय आने से ही होता है / जैसे वृक्ष को सदा चाहे कितना ही खाद और पानी क्यों न दिया जाय, लेकिन ऋतु आने पर फल देता है, पहले नहीं। 86 ममता विना मोह नहीं होता, ज्ञान और वैराग्य से ममता छूटती है, विवेकज्ञान तथा अनुभव से आत्मज्ञान होता है और जड़ चेतन का भेद ज्ञान होने से शोक आदि का हृदय में प्रवेश नहीं होता है। . 87 तृष्णावान को सुखी समझना क्या है, मानो अग्नि को शीतल समझना है / विषयों में सुख मानना क्या है, मानो का लकूट-जहर को अमृत मानना है / सांसारिक धनसम्पत्ति को सच . समझना क्या है, मानो स्वप्न के राज्य को सच समझना है / 88 सिपाही की लड़ाई में,साहूकार की लेनदेन में, कुटुम्बियों की आपत्काल में और मित्रों की दरिद्रता में परीक्षा करनी चाहिए। 86 अन्यायियों का भयसे, लुच्चों का बदनामी से, बहुत खाने वालों का रोग से, बुरी सलाह मानने वालों का नुकसान से कभी छुटकारा न होगा। 60 जागने से चोर, क्षमा से कलह, उद्योग से दारिद्रय और भगवाणी से पाप नष्ट होता है। 61 बुरे कामों से दूर रहना, अच्छे कामों को अपना कर्तव्य