________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला - किसी के पास हृदय खोलने से क्षुद्रता (हलकाई) समझी जाती है। 266 विष से ज्यादा जहरीला कर्ज है, विष तो खाने वाले ही को मारता है, किन्तु कर्ज बालबच्चों को .. भी मारता है। 270 उत्तम पुस्तकें सत्संगति का काम करती हैं, और खराब पुस्तके सत्संगति के सुंदर असर को भस्म करदेती हैं। 271 धर्म की जड़ विनय है, कपट से नहीं किन्तु . सच्चे मन से बड़ों की सज्जनों की और गुरुमों . की विनय करो। 272 उपकारी का उपकार भूल जाने वाले में मनुष्यता का गुण नहीं रह सकता, पशु भी उपकार का बदला चुकाते हैं। 273 विशाल मन और विशाल कार्यों में ही बड़प्पन हैं, पर बड़ी बातें करने में नहीं। 274 त्यागशीलता (दान) के विना सम्पत्ति ऐसी निर्माल्य और अस्पृश्य है, जैसे विना चेतन के शरीर / 275 दान की प्रतिध्वनि स्वर्ग के द्वार तक पहँचती