________________ [24] सेठिया जैन ग्रन्थमाला . दुःख है इसलिए इन से बचते रहो। 218 याद रखिए, एक दिन अवश्य मरना है और कृत (किए हुए) कर्म का बदला अवश्य भरना है 219 जीवन, जल के बुलबुले के समान है, लक्ष्मी अस्थिर, शरीर क्षणनश्वर (क्षणभंगुर) और थोड़ा या बहुत काम-भोग दुःख ही का कारण है। 220 धन अति प्यारा लगे, तो भी अनीति से इकट्ठा न करना चाहिए / धन हाट हवेली कुटुम्ब परिवार सब यहां ही रह जाता है / केवल जीव ही अकेला पाता और जाता है, अपने द्वारा बांधे हुए कर्म अपने आप भोगता है, संसार में सब स्वार्थी हैं। 221 कषाय राग और द्वेष को कम करो-जीतो, इन्द्रियदमन करो, धर्म और शुक्ल ध्यान को ध्याओ। 222 पाप की निन्दा करनी चाहिए परन्तु पापी की नहीं / स्वात्मा की निन्दा करनी, परन्तु पर की नहीं। 223 यह कभी भी न सोचना चाहिए कि जो 'मेरा