________________ नीति-शिक्षा-संग्रह और निर्लोभी मनुष्य के हृदय में इसे स्थान नहीं मिलता। 100 जो पालने वाला का उपकार भूल जाय और नमक-- हरामी करने से न डरे / जो विना कारण क्रोध करे और वह क्रोध भी ऐसा कि जिसे वह दबा न सके / जो परमात्मा और मृत्यु को भूलकर संसार के मदसे मतवाला हो जावे, जो छलकपट से अपना काम निकालता हो और उस को अच्छा जानता हो, जिसे झूठ बोलने और बेइजत होने की आदत हो और सचाई और ईमानदारी से जो कोसों दूर हो, जो आशा और तृष्णा के वशीभूत हो, जो निर्लज्ज और असभ्य हो, जो विना सबब ही लोगों को बुरा समझे और उन को सतावे, इन पाठ भादमियों से हमेशा वचे रहना चाहिए / १०१जो पर की निन्दा और विकथा करने में गूंगा है, परस्त्री का मुख देखने में अन्धा है, पर का धन हरण करने में पंगु है, ऐसा महापुरुष संसार में प्रशंसनीय है; क्योंकि परनिंदा परस्त्रीप्रेम, और पर द्रव्यहरण महानिंद्य है / 102 आलस्य, निद्रा, क्लेश,शोक, रोग, अविनय और कुटुम्ब से मोह, इन 7 बातों से ज्ञान घटता है / 103 स्त्री का मान पति से होता है,संतान की पालना मा बाप से होतीहै। शिष्य की शिक्षा गुरु से होती है ।राजा की शक्ति, सेना और सुयोग्य मन्त्री हैं / सिद्धों की सिद्धाई इन्द्रियों के विजय से