________________ (198) सेठियाजैनग्रन्थमाला 66 शान्ति से क्रोध को और विनय से मान को टालना चाहिए तथा सरलस्वभाव से माया को और संतोष से लोभ को हटाना चाहिए / कषायों को दूर करने का एक मात्र यही उपाय ज्ञानियों ने बताया है। ...67 बड़े लोगों ने कहा है कि सब से बुरा वह धनमाल है, जिससे किसी का भला न हो / बहुत ही बेसुध वह कारबारी है, जो अपने कारबार की संभाल जैसी करनी चाहिए न करे / सब से अधम वह मित्र है जो विपत्ति में अपने मित्रों को सहायता न दे। पहले दर्जे की वह बदचलन स्त्री है, जो अपने पति पर हृदय से प्रेम न करे / परले सिरे का वह कपूत लड़का है, जो मा बाप की सेवा न करे / सब शहरों से उजाड़ वह शहर है जिस में सस्ता नाज और सुखचैन न हो और सव समाभों में निषिद्ध वह सभा है जिस में शुद्ध मन के मेम्बर न हो / 68 पचों और न्यायाधीशों को चाहिए कि दया और क्षमा का बर्ताव रखें / नौकर चाकरों और प्रजा को थोड़े थोड़े अपराध पर भारी दंड न दें जहां तक बन सके छोटे 2 अपराधों को क्षमा कर दें। ___66 क्रोध को अपने ऊपर प्रबल न होने दे, क्योंकि क्रोध करना लाचार और कमजोर लोगों का काम है। झूठ को हृदय में स्थान न दे; क्योंकि झूठ डर और लोभ से होता है / निडर