________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (193) कपास बाहर से कैसी कोमल जान पड़ती है, लेकिन उस के भीतर का बिनौला कितना कड़ा होता है। 62 मनुष्य को चाहिये कि सदा दूरदर्शी रहे और समय समय पर हाजिर-जवाबी भी किया करे किसी काम में जल्दी या देर न करे तथा आलस्य को त्यागे। 63 बाज वक्त जल्दबाजी से किये हुए काम का भी फल अधिक मिल जाता है और कभी कभी अच्छी भाँति किये हुए काम का फल मिलता ही नहीं; तथापि बुद्धिमान को किसी काम में जल्दी न करनी चाहिये, क्योंकि जल्दबाजी का काम प्रायः दुःख दायी होता है। 64 जिस काम को नौकर, स्त्री और भाई नहीं कर सकते उसको मित्र निस्संदेह कर सकता है / इस बास्ते मित्र-प्राप्ति के लिये उद्योग करना चाहिये। 65 दुश्मन की नम्रता और चापलोसी से धोखे में नहीं आजाना चाहिए; क्योंकि चीता और धनुष की कमान हिरन को झुक झुक कर ही मारती है। 66 जो लोग नीच प्रकृति के हैं, उन्हें चाहे जितनी शिक्षा दी जाय, परन्तु वे अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ते / जैसे नीम चाहे जितनी खांड गुड से सींचा जाय तो भी उसका कडुवापन कभी न जायगा /