________________ नीति-शिक्षा-संग्रह 44 चींटी समान छोटे 2 जीवों को भी अपनी ही बराबर समझो / जिस दुश्मन को तुम बुराई के लायक समझते हो, उस के साथ भी भलाई ही करो। 45 सम्पत्ति और विपत्ति दोनों के समय, एक समान रहो / अर्थात् सुख-सम्पदा में फूल मत जाओ और दुःख पड़ने के समय एक दम घबरा मत जाओ। 46 किसी से ऐसी बात मत कहो कि, अमुक मनुष्य मेरा शत्रु है अथवा मैं अमुक मनुष्य का दुश्मन हूँ। अगर तुम्हारा मालिक कभी तुम्हारा अपमान: अनादर करे या तुम से प्रेम न रक्खे, तो दूसरों से यह मत कहते फिरो कि हमारा मालिक हमको नहीं चाहता और इस तरह हमारी बेइज्जती करता है / 47 अगर तुम किसी की नौकरी करो या किसी की मातहतोआधीनता में काम करो, तो अपने स्वामी या मफसर का दिल जिस तरह खुश रहे, वैसा ही उद्योग किया करो / मालिक या अफसर का दिल हाथ में रखने में ही भलाई है। 48 भुजाओं से नदी को तैरकर पार न करे / खराब सवारी, टूटे फूटे रथ, गाड़ी या नाव पर न चढ़े / बिना भारी जरूरत के दरख्त पर न चढ़े / अपनी नाक न खुजावे और बिना मतलब धरती न खोदे / 46 सूर्य को टकटकी लगाकर न देखे / सिर पर बोझ लेकर