________________ सेठियाजेनग्रन्थमाला 76 महापुरुषों की सेवा किसी भी दिन निष्फल नहीं जाती. 80 धर्म प्रेमियोंको चाहिये कि सबसे प्रथम अपना जीवन नीतिवान् बनावे. 81 हर वख्त अपने गुण-अवगुणों पर ध्यान रखना परमा वश्यक है. . 82 विनय, विवेक, क्षमा, दया, दान, और शील आदि शुभ गुणोंका हमेशा आचरण करना चाहिये. .. 83 ज्ञानकी व ज्ञानीको सेवा-भक्ति करनेसे सम्यग् बोधकी प्राप्ति होती है. 84 परमात्मा ने पापका मूल 'लोभ' बताया है-व्याधिका बीज 'रसास्वादन' (जिह्वाकी लोलुपता) फरमाया है और सकल दुःखोंका मूल स्नेह' दर्शाया है. 85 अपने पास में हो, वही पैसा आवश्यक समय पर उपयोगमें आसकता है. 86 सावध कार्य करके मानन्द न मानना, किन्तु पश्चाताप करना चाहिये; यह योग्य जनोंकी योग्यता है." ८७स्त्रीहत्या, बालहत्या, गौहत्या, और ऋषिहत्या, ये चार बड़ी हत्याएं कही जाती हैं। इनका सदा त्याग करना चाहिये. 88 जिस वख्त क्रोध उत्पन्न हो, उस समय तमाम कामोंको छोड़कर प्रभुका नाम जपना शान्ति करता है / ''