________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (87) 54 जो मनुष्य अपने शरीर की रक्षा के लिए व्यापार नौकरी खेती आदि व्यवसाय, सत्य नीति और न्याय से करता है, वह ज्ञानी है; और जो असत्य अनीति और अन्याय से करता है, वह मूर्ख है। . 55 जो मनुष्य अपनी प्रात्मा का अहित कर बैठता है, उससे किसी प्रकार की भाशा रखना व्यर्थ है। अपनी मात्मा का अहित करने वाले से उन्नति को आशा रखना आकाशपुष्प के समान तथा खरगोश के सींग समान है। 56 शरीर की अपेक्षा आत्मा की कीमत ज्यादा है / शरीर और आत्मा दोनों उपयोगी हैं, लेकिन इन में से किसी एक के त्याग का मौका आने पर शरीर का त्याग कर आत्मा की रक्षा करनी चाहिए / आत्महित तथा निःस्वार्थ परहित के लिए तन मन और धन का उपयोग करना ही धर्म है। 57 सच्चा सुखी-- जो अपने पास हो, तथा प्रामाणिकता से जो कुछ मिले, उसी में सन्तोष कर अपना गुजारा करे, शारीरिक परिश्रम करके ही खावे पीवे दूसरे के सहारे पर न रहे / दूसरे का उपकार करे, लेकिन दूसरे से अपना उपकार न चाहे / 58 सच्चा धर्मात्मा- अपने धर्म पर प्रीति करे; लेकिन धर्मान्ध न बने / दूसरे धर्मों के सिद्धान्त और रहस्य जानने का उद्यम करे / उनके तत्व जानकर उन से शिक्षा लेना सीखे / भात्महित