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मरणकण्डिका - ५५
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ग्रहण कर स्वयं भेजे एवं आचार्य आदि के शास्त्र, पीछी तथा कमण्डलु आदि उपकरणों का शोधन दोनों सन्ध्याओं में करना चाहिए ।।१२५ ।।
इन भेदों को आदि करके और सभी प्रकार की उपचार विनय अपने शरीर के द्वारा साधुवर्ग में सदा यथायोग्य की जाती है। यह कायिक विनय कही गई है।।१२६ ।।
वाचिक विनय पूजा-सम्पादकं वाक्यमनिष्ठुरमकर्कशम् ।
अक्रिया-वर्णकं श्रव्यं, सत्यं सूत्रानुषीचिकम् ॥१२७ ।। अर्थ - पूजा सम्पादक, अनिष्ठुर, अकर्कश, पापारम्भ अकारक, कर्ण-प्रिय, सत्य एवं आगमानुकूल वचन नोजाना वाचिक विनय है !:५२५८ ।।
उपशान्तमगार्हस्थ्य, हितं मितमहेडनम् ।
योगिनो भाषमाणस्य, विनयोऽवाचि वाचिकः ॥१२८॥ अर्थ - उपशान्तवचन, जो गृहस्थों के योग्य नहीं हैं ऐसे वचन, हित वचन, मित वचन और अवज्ञा आदि न करने वाले जो वचन योगिजन द्वारा बोले जाते हैं, उन्हें वाचिक विनय कहते हैं ।।१२८ ।।
प्रश्न - पूजा सम्पादक आदि वचनों के क्या लक्षण हैं?
उत्तर - हे स्वामिन् ! मैं सुन रहा हूँ। हे भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं जाऊँ, इत्यादि रूप से आदरसूचक वचन बोलना पूजा सम्पादक वचन हैं। अनिष्ठुर अर्थात् जो वचन दूसरों के मन को दुखी न करें। अकर्कश अर्थात् मधुर वचन । अक्रिया वर्णक वचन अर्थात् असि, मसि, कृषि एवं अन्य भी आरम्भ आदि में प्रवृत्ति न करानेवाले या जीवों को बाधा न देने वाले वचन | श्रव्य अर्थात् कर्णप्रिय वचन । उपशान्त वचन अर्थात् राग-द्वेष रहित वचन । अगार्हस्थ्य वचन अर्थात् मिथ्यादृष्टि या असंयमी जन जो शिष्ट वचन नहीं बोलते ऐसे वचन | हित अर्थात् उभय लोकों में हितकारी वचन। मित अर्थात् जितना बोलने से विवक्षित अर्थ का बोध हो जावे उतना वचन तथा अहेडन अर्थात् दूसरों का निरादर न करने वाले वचन। उपर्युक्त कहे अनुसार वचन बोलना वाचिक विनय है।
मानसिक विनय हित-मित-परिणामं, विदधानस्य मानसः ।
पापासव-परिणाम, मुञ्चतो विनयो मतः ।।१२९ ।। अर्थ - पाप लानेवाले अशुभ परिणामों का त्याग करना और जो गुरु को प्रिय एवं हितकर हो उसी रूप परिणाम करना मानसिक विनय है ।।१२९ ।।
प्रश्न - गुरु के प्रति किये जाने वाले कौन-कौन से परिणामों से पापानव होता है?
उत्तर - गुरु द्वारा अपनी स्वेच्छाचारिता का निवारण किये जाने पर, परिणामों में क्रोध उत्पन्न हो जाने पर, शिष्य अविनयी या उद्दण्ड देखकर उसके प्रति गुरु की कृपादृष्टि उठ जाने पर, अर्थात् ‘मुझे मेरे गुरु अब पूर्ववत्