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मरणकण्डिका - २५२
करणेन विना ज्ञानं, संयमेन विना तपः।
सम्यक्त्वेन विना लिङ्ग, क्रियमाणमनर्थकम् ॥८०३॥ अर्थ - आचरणहीन ज्ञान, संयम बिना तप और सम्यक्त्व बिना मुनिदीक्षा ग्रहण करना निरर्थक है।।८०३॥
ज्ञानोद्योतं विना योऽत्र, मोक्षमार्गे प्रयास्यति ।
प्रयास्यति बने दुर्गे, सोऽन्धो-ध-तासे शनि ।।८.०४।" ___ अर्थ - जो पुरुष ज्ञानरूपी प्रकाश के बिना मोक्षमार्ग को अर्थात् चारित्र एवं तप को प्राप्त करना चाहता है वह उस पुरुष के सदृश है जो अन्धा है और रात्रि के अन्धकार में गहन वन में गमन करना चाहता है ।।८०४ ।।
संयमं श्लोक-खण्डेन, निवार्य मरणं यमः।
यदि नीतस्तदा किं न, जिनसूत्रेण साध्यते ।।८०५ ।। अर्थ - यदि स्व-रचित भी श्लोक के एक खण्ड का स्मरण, उच्चारण एवं स्वाध्याय करते हुए यम मुनि मरणरूपी आपत्ति को रोक कर उत्तम संयम को प्राप्त हुए थे तब जिनेन्द्रोपदिष्ट आगम के स्वाध्याय द्वारा क्या-क्या सिद्ध नहीं हो सकता? सब कुछ प्राप्त हो सकता है ।।८०५ ।।
*यम मुनिराज की कथा * उडु देशान्तर्गत धर्मनगर में राजा यम राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम धनवती, पुत्र का नाम गर्दभ और पुत्री का नाम कोणिका था। किसी ज्योतिषी ने कोणिका की जन्मपत्रिका देखकर राजा से कहा कि इस कन्याका जिसके साथ विवाह होगा वह संसारका सम्राट् होगा। यह बात सुनकर राजाने अन्य क्षुद्र राजाओंकी दृष्टि से बचानेके लिये कन्याको बड़े यत्नसे रखना शुरू कर दिया।
एक समय धर्मनगर में सुधर्माचार्य ५.०० मुनिराजोंके साथ आये और नगरके बाहर उद्यानमें ठहर गये। अपनी विद्वत्ताके गर्वसे गर्वित राजा यम समस्त परिजन और पुरजनोंके साथ मुनियोंकी निन्दा करता हुआ संघके दर्शनार्थ जा रहा था, किन्तु गुरुनिन्दा और ज्ञानमदके कारण मार्गमें ही उसका सम्पूर्ण ज्ञान लुप्त हो गया और वह महामूर्ख बन गया। इस अनहोनी घटनासे राजा अत्यन्त दुःखी हुआ और उसने पुत्र गर्दभको राज्यभार देकर अपने अन्य ५०० पुत्रोंके साथ दीक्षा ले ली। दीक्षा लेने के बाद भी वे मूर्ख ही रहे अर्थात् पंचनमस्कारका उच्चारण भी वे नहीं कर सकते थे। इस दुःखसे दुखित होकर यम मुनिराज गुरुसे आज्ञा लेकर तीर्थयात्रा को चल दिये। मार्गमें उन्होंने गर्दभयुक्त रथ, गेंद खेलते हुए बालक और मेंढ़क एवं सर्पके निमित्तसे होने वाली घटनाओंसे प्रेरित होकर तीन खण्डश्लोकों की रचना की।
यम मुनिराज साधु सम्बन्धी प्रतिक्रमण, स्वाध्याय एवं कृतिकर्म आदि सभी क्रियाएँ इन तीन खण्ड श्लोकों द्वारा ही किया करते थे, इसीके बलसे उन्हें सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गई थीं।
अन्यत्र भी - एक राजा ने भिक्षा से उदरपूर्ति करने वाले एक अज्ञ एवं अन्धे का वाक्य सुनकर हंसी से कण्ठस्थ कर लिया। उस वचन से उनके ऊपर आई हुई आपत्ति टल गई | जब एक अन्धे और अज्ञ भिखारी