________________
मरणकण्डिका - ५६३
प्राणान्त हो जाने पर तत्काल करणीय कर्तव्य यदैव नियते काले, त्यजनीयस्तदैव सः ।
अवेलायां विधातव्या, छेद-बन्धन-जागराः ॥२०५२ ।। अर्थ - जिस समय साधु का मरण हो उसके शव को उसी समय ले जाना चाहिए, यदि मरण अवेला अर्थात् रात्रिआदि में हो तो शव के अंगूठे को छेद देना चाहिए या बाँध देना चाहिए और रात्रि भर जागरण करना चाहिए।।२०५२॥
जागरण करने वाले साधु भीरु-शैक्ष-गणि-ग्लान-बाल-वृद्ध-तपस्विनः ।
अपाकृत्यापार-धीरा, जितनिद्राः प्रजाग्रति ॥२०५३॥ अर्थ - डरपोक मुनि, शिक्षक मुनि, आचार्य, रोगी मुनि, बाल मुनि, वृद्ध मुनि एवं तपस्वी मुनि शव के समीप जागरण न करें। इनके अतिरिक्त जो साधु अपार धैर्यशाली और निद्रा-विजयी हैं वे ही जागरण करने .. के पात्र हैं ।।२०५३ ॥
बन्धन-छेदन करने वाले साधु कृतकृत्या गृहीता, महाबल-पराक्रमाः।
हस्ताङ्गुष्ठादि-देशेषु, बन्धं छेदं च कुर्वते ।।२०५४ ।। अर्थ - जिन्होंने पूर्व में अनेक बार क्षपक की सेवा की है एवं आगम के अर्थ को जो भली प्रकार जानते हैं, महाबलशाली हैं और पराक्रमी हैं, ऐसे साधु मृतक क्षपक के हाथ या पैर के अंगुष्ठ या अंगुली को छेद देते हैं या बाँध देते हैं ।।२०५४।।
छेदन एवं बन्धन का कारण विधीयते न यद्येवं, तदा काचन देवता।
कलेवरं तदादाय, विधत्ते भीषण-क्रिया॥२०५५॥ अर्थ - यदि यह छेदने या बाँधने की क्रिया न की जाय तो कोई भी मनोविनोदी व्यन्तर आदि देव उस मृतक देह में प्रविष्ट होकर भयंकर चेष्टाएँ कर सकता है।।२०५५॥
प्रश्न - देव शव में प्रविष्ट होकर क्या भयंकर चेष्टाएँ करता है और उन चेष्टाओं से क्या हानि है?
उत्तर - शव के शरीर में प्रविष्ट होकर वह देव उस शव को दौड़ा सकता है, क्रीड़ा करा सकता है, आहार-पान की याचना करा सकता है, रुला सकता है, हँसा सकता है तथा बाधा देने वाली अन्य भी अनेक चेष्टाएँ करा सकता है, जिन्हें देखकर कोई भी बालमुनि एवं भीरु स्वभाव वाले मुनि भयभीत होकर भाग सकते हैं, चिल्ला सकते हैं, अस्वस्थ हो सकते हैं एवं मरण को भी प्राप्त हो सकते हैं, जिससे धर्म की तथा संघ की निन्दा होती है, अतः असमय में मरने वाले क्षपक के शरीर में छेदने या बाँधने की क्रिया करना आवश्यक है।