Book Title: Marankandika
Author(s): Amitgati Acharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Shrutoday Trust Udaipur

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Page 608
________________ मरणकण्डिका - ५८४ अर्थ - यदि उपसर्ग द्वारा उठाकर अन्यत्र फेंक दिये जाते हैं और वहाँ उनका मरण हो जाता है तो प्राज्ञ पुरुषों द्वारा शरीर की चलता मानी गई है, अन्यथा एक स्थान पर शरीर की स्थिरतापूर्वक ही मरण होता है अर्थात् उपसर्ग के कारण स्थानान्तर होते हैं अन्यथा नहीं। एक बार जहाँ जिस आसन से स्थित हो जाते हैं. मरण पर्यन्त वैसे ही स्थिर रहते हैं ।।२१४३ ।। प्रायोपगमनं केचित्, कुर्वते प्रतिमा-स्थिताः। प्रपद्याराधनां देवीमिङ्गिनीमरणं परे ।।२१४४॥ इति प्रायोपगमनम् । अर्थ - कोई मुनिराज कायोत्सर्ग धारण कर प्रायोपगमन मरण करते हैं अर्थात् प्रायोपगमन संन्यास धारण कर चार आराधनाओं की आराधना पूर्वक समाधि करते हैं और कोई मुनिराज इंगिनीमरण धारण कर आराधना देवी की आराधना करते हुए समाधि करते हैं।।२१४४ ।। इस प्रकार प्रायोपगमन मरण का वर्णन पूर्ण हुआ। ___ इस प्रकार पण्डितमरण के तीन भेदों में से भक्त प्रत्याख्यान का वर्णन अतिविस्तार पूर्वक और इंगिनी तथा प्रायोपगमन विधि का संक्षेप में किया है। अनायास महान् उपसर्ग आदि आ जाने पर भी महामुनि पण्डितमरण में उत्साह रखते हैं उपसर्गे सति प्राप्ने, दुर्भिक्षे च दुरुत्तरे। कुर्वन्ति मरणे बुद्धिं, परीषह-सहिष्णवः ॥२९४५॥ अर्थ - जिसका निवारण करना अशक्य है ऐसा घोर उपसर्ग आ जाने पर तथा महा भयंकर अकाल पड़ जाने पर परीषहों को सहन करने में समर्थ योगीश्वर पण्डितमरण पूर्वक समाधिमरण करने में ही अपनी बुद्धि लगाते हैं ||२१४५ ॥ इसी के समर्थक दृष्टान्त कोशलो धर्मसिंहोऽर्थ, ससाध श्वास-रोधतः। कोष्णतीरे पुरे धीरो, हित्वा चन्द्रश्रियं नृपः॥२१४६ ।। __ अर्थ - कौशलाधिपति धर्मसिंह नाम के धीर-वीर राजा ने कोष्णतीर नामक नगर के निकट अपनी पत्नी चन्द्रश्री का त्याग कर दीक्षा ग्रहण की, पश्चात् श्वासनिरोध द्वारा समाधिमरण साध कर पण्डितमरण किया ॥२१४६।। *धर्मसिंह मुनि की कथा * दक्षिण देशमें कोष्ठा तीर (कौशलगिरि) नगर के राजा वीरसेन और रानी वीरमती से दो पुत्र, पुत्री, हुए पुत्र का नाम चन्द्रभूति और पुत्री का नाम चन्द्रश्री था। चन्द्रश्री का विवाह कौशल देश के राजपुत्र धर्मसिंहसे हुआ। दोनोंका समय सुखपूर्वक व्यतीत होने लगा। धर्मसिंह अत्यंत धर्मप्रिय था, विशाल राज्यका संचालन

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