Book Title: Marankandika
Author(s): Amitgati Acharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Shrutoday Trust Udaipur

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Page 630
________________ मरणकण्डिका - ६०६ अर्थ - देवेन्द्र एवं चक्रवर्ती आदि रूप, गन्ध, रस, स्पर्श एवं शब्दों का इन्द्रियों द्वारा उत्तम विषयों का सेवन कर जो प्राप्त करते हैं, वह सुख सिद्धों के आत्मोत्थ शाश्वत सुख का अनन्तवाँभाग भी नहीं होता है ।।२२२९ ।। काल-त्रितय-भावीनि, यानि सौख्यानि विष्टपे। सिद्धैक-क्षण-सौख्यस्य तानि यान्ति न तुल्यताम् ॥२२३० ।। राग-हेतु पराधीनं, सर्व वैषयिकं सुखम् । स्वाधीनेन विरागेण, सिद्ध-सौख्येन नो समम् ॥२२३१॥ अर्थ - सब तिर्यंचों, मनुष्यों एवं देवों को तीनों कालों में जो-जितना भी सुख इस जगत् में है वह सब सुख सिद्धों के एक क्षण के सुख तुल्य भी नहीं है, क्योंकि संसारी जीवों का सुख राग का कारण है, पराधीन है और पंचेन्द्रियों के विषयों से उत्पन्न होने वाला है, वह स्वाधीन एवं विरागसम्पन्न सिद्ध प्रभु के सुख के साथ कदापि समानता को प्राप्त नहीं हो सकता।।२२३०-२२३१ ।। __ अनिन्द्रियसुख का लक्षण अक्षयं निर्मलं स्वस्थं, जन्म-मृत्यु-जरातिगम्। सिद्धानां स्थावरं सौख्यमात्मनीन जनार्चितम् ।।२२३२॥ अर्थ - सिद्धों का सुख कभी नष्ट नहीं होता अत: अक्षय है, भाव कर्मरूपी मल का अभाव हो जाने से निर्मल है, जन्म, मृत्यु और जरारूपी रोगों का अभाव हो जाने से स्वस्थ अर्थात् आरोग्य है, शाश्वत है, आत्मा से ही समुत्पन्न है और सर्व संसारी प्राणियों द्वारा अर्चित है।॥२२३२ ।। सिद्ध परमेष्ठी के गुण आदि कर्माष्टक-विनाशेन, ते गुणाष्टक-वेष्टिताः। सन्तिष्ठन्ते स्थिरीभूताः भुवनत्रय-वन्दिता: ।।२२३३ ।। अर्थ - अष्ट कर्म नष्ट हो जाने से सिद्ध परमेष्ठी अष्ट गुण युक्त हैं, उनके सर्व आत्मप्रदेश अचल एवं स्थिर अर्थात् हलन-चलन से रहित होने के कारण स्थिरीभूत हैं और तीन लोक के जीवों द्वारा सदैव वन्दित हैं ।।२२३३॥ प्रश्न - सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण कौन-कौनसे हैं और किन कर्मों के अभाव से प्रगट हुए हैं? उत्तर - सिद्ध परमेष्ठी का ज्ञानावरण कर्म नष्ट हो जाने से केवलज्ञान या अनन्तज्ञानगुण, दर्शनावरण कर्म नष्ट हो जाने से केवलदर्शन या अनन्त दर्शन गुण, वेदनीय कर्म के अभाव से अव्याबाध गुण, मोहनीय कर्म नष्ट हो जाने से सम्यक्त्व गुण, आयु कर्म नष्ट हो जाने से अवगाहनत्व गुण, नामकर्म नष्ट हो जाने से सूक्ष्मत्वगुण, गोत्र कर्म नष्ट हो जाने से अगुरुलघुगुण और अन्तराय कर्म नष्ट हो जाने से अनन्त-वीर्यगुण प्रकट हो जाते हैं अत: वे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अव्याबाधत्व, सम्यक्त्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, अगुरुलधुत्व और अनन्त वीर्य, इन आठ गुणों से युक्त होते हैं।

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