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मरणकण्डिका - ६१६
अर्थ - यह आराधना सम्यग्दर्शन रूप कान्ति से सुन्दर है, सम्यग्ज्ञान रूप उज्ज्वल नेत्रवाली है, सच्चारित्ररूप आभूषण से युक्त है, पवित्र तप एवं शील समुदायरूप माला और वस्त्रों से सुसज्जित मुक्ति रूपी सुन्दर स्त्री की प्रिय सखी है, मदन से द्वेष करती है तथा बुधजनों से वन्दित है, ऐसी यह आराधना देवी मेरे हृदय में नित्य ही निवास करे॥३१ ।।
या शुद्ध्यष्टक-युक्त-दर्शन-दलं, ज्ञानोल्लसत्कर्णिकम् । चारित्रोज्वल-दीर्घ-नालममलं, शीलोल्लसत्केसरम् ॥ मुक्ति-श्री-ललना-निवास-कमलं, धत्ते गुणैर्निर्मितम् । सा मे हृत्सरसि स्फुटं विकसतादाराधना पद्मिनी ॥३२॥
इति आराधना स्तवनम् समाप्तम् ॥ अर्थ - अष्ट प्रकार की शुद्धि से संयुक्त सम्यक्त्व ही जिसका दल है, सम्यग्ज्ञान जिसकी कर्णिका है, चारित्र रूप उज्ज्वल नाल है, निर्मल शील समुदाय ही केसर है और मोक्षरूपी लक्ष्मी का निवासस्थल है, ऐसे कमलों को धारण करने वाली, गुणों से समुत्पन्न यह आराधना रूपी कमलिनी मेरे हृदयरूप सरोवर में विकसित रहे ॥३२॥
इस प्रकार आराधना स्तवन पूर्ण हुआ॥
मणक्खत्त-वण्णणं तं जधा। अस्सिणी-णखत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदि सादि-णखत्ते रत्ते कालं करेदि॥१।।
नक्षत्र गुणों का वर्णन __ अर्थ - क्षपक यदि अश्विनी नक्षत्र में संस्तर ग्रहण करता है तो स्वातिनक्षत्र के उदित रहते रात्रि में उसका मरण होगा ॥१॥
भरणि-णक्कत्ते जदि संथारं गेण्हदि तदा रेवदि-णक्खत्ते पच्चूसे मरदि॥२॥
अर्थ - क्षपक यदि भरणी नक्षत्र में संस्तर ग्रहण करता है तो रेवती नक्षत्र में प्रातःकाल उसका समाधिमरण होगा ।।२।।
कित्तिग-णखत्ते जदि संथारं गेण्हदि तदा उत्तरफागुणि-णक्खत्ते मज्झण्हे मरदि॥३॥
अर्थ - क्षपक यदि कृतिका नक्षत्र में संस्तर ग्रहण करता है तो उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र में मध्याह्न काल में उसका मरण होगा ॥३॥
रोहिणी-णक्खत्ते जदि संथारं गेण्हदि तदा सवण-णक्खत्ते अद्धरते मरदि॥४॥
अर्थ - क्षपक यदि रोहिणी नक्षत्र में संस्तर ग्रहण करता है तो श्रवण नक्षत्र के उदित रहते अर्धरात्रि में उसका मरण होगा ॥४॥