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मरणकण्डिका - ६१४
अर्थ - यह आराधना कण्ठ में पहने जाने वाले मुक्ताहार के सदृश है, जिसमें षोड़शकारण भावना रूप मोती पिरो भा है, मध्य में दशलक्ष धर्मरूप रत्नों की रचना है, सम्यग्ज्ञानरूपी धागे से इसकी रचना हुई है
और जिसमें चारित्र और उत्तम गुप्तिरूप ऐसे विशिष्ट मोती डाले गये हैं, जो दोष रूपी उग्रज्वर आदि रोगों को नष्ट करते हैं, ऐसी यह आराधना रूपी कण्ठिका आपके वक्षस्थल पर शोभायमान हो ॥२३॥
या नि:शेष-परिग्रहेभ-दलने, दुर्वार-सिंहायते। या कुज्ञान-तमो-घटा-विघटने, चण्डांशु-रोचीयते ।। या चिन्तामणिरेव चिन्तित-फलैः संयोजयन्ती-जनान् ।
सा वः श्री वसुनन्दियोगि-महिता, पायात्सदाराधना ।।२४ ।। अर्थ - यह आराधना सर्व परिग्रह रूपी हाथियों का घात करने के लिए सिंह के सदृश है, अज्ञान अन्धकार रूप घटा-टोप का विघटन करने के लिए सूर्य की प्रचण्ड किरण सदृश है और आराधक मनुष्यों को चिन्तित फल देने के लिए चिन्तामणि तुल्य है, ऐसी यह वसुनन्दी आचार्य द्वारा पूजित आराधना आपकी सदा रक्षा करे॥२४॥
या संसार-महोदधेः प्रतरणी, नौरेव भव्यात्मनाम् । या दुःख-ज्वलनावलीढ-वपुषां, निर्षापणी स्त्रधुनी। या चिन्तामणिरेव चिन्तित-फलैः, संयोजयन्ती जनान् ।
सा निःश्रेयस-हेतुरस्तु भवतामाराधना देवता ॥२५॥ अर्थ - भव्य जीवों को संसार-समुद्र से पार करने के लिए यह उत्तमोत्तम आराधना नौका सदृश है, दुख रूप अग्नि की ज्वालाओं से वेष्टित अर्थात् जलते हुए जीवों को सुख, शान्ति एवं शीतलता प्रदान करने के लिए स्वर्ग-गंगा के समान है और मनोवांछित फलों से मनुष्यों को संयुक्त करने वाली है, ऐसी यह आराधना देवी आपको मोक्ष देने में कारण बने ॥२५॥
या पुण्यासव-मूर्तिरेक-पदवी, स्वर्गालयारोहिणाम् । या मार्ग-त्रय-वर्तिनीति विदिता. निर्धत-नाना-रजाः ।। यस्याः सद्गुरु-पर्वतः प्रभव इत्याहु पुरा-वेदिनः।
सा वः पाप-मलानि गालयतु खल्वाराधना-स्वर्धनी ॥२६॥ अर्थ - यह आराधना पुण्यास्रव की मूर्ति सदृश है, स्वर्गारोहण करने वालों को मार्ग सदृश है, रत्नत्रय स्वरूप होने से लोग इसे त्रिमार्गणा कहते हैं, इसकी सेवा करने से नाना प्रकार के पातक नष्ट हो जाते हैं तथा यह आराधना देवी सद्गुरु रूपी पर्वत से प्रगट हुई है ऐसा प्राचीन आचार्य कहते हैं। ऐसी यह आराधमा गंगा तुम्हारे पाप-मलों को गलाये ||२६||
या सर्वज्ञ-हिमाचलात्प्रगलिता, पुण्याम्बु-पूर्णा शुचिः। या सज्ज्ञान-चरित्र-लोचन-धरैमूर्धा गणीन्द्रद्धुता ॥ या कर्मानल-धर्म-पीडित-मुनीन्द्रेभावगाह-क्षमा। सा वो मङ्गलमातनोतु भगवत्याराधना-स्वधुनी ।।२७ ।।