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मरणकण्डिका - ५८७
विरोध था। एक दिन पद्मरुचि नामके यतिराजसे धर्मोपदेश सुनकर शकटाल मंत्रीने जिनदीक्षा ग्रहण की। जैन सिद्धांत का अध्ययन कर उन यतिराजने संपूर्ण तत्त्वोंका समीचीन ज्ञान प्राप्त किया। किसी दिन शकटाल मुनि आहारार्थ राजमहल पधारे । आहार करके लौट रहे थे कि वररुचिने उन्हें देखा । वररुचि शकटालसे अत्यंत द्वेष रखता था अतः मौका देख उसने राजा नंद से कहा कि देखो, यह नग्न ढोंगी साधु महल में जाकर क्या-क्या पाप कर आया है, इत्यादि अनेक तरहसे राजाको कुपित किया, राजाने शकटाल मुनिको मार डालनेकी आज्ञा दी। कर्मचारी मुनिकी तरफ आ रहे थे, उन्हें शस्त्रास्त्र सहित आवेशमें आते देखकर शकटाल मनिने निश्चय किया कि ये घोर उपद्रव करने वाले हैं अत: उन्होंने तत्काल चतुराहारका त्याग एवं रागद्वेषकषाय का त्यागकर संन्यास ग्रहण किया और शस्त्र द्वारा प्राणत्याग कर स्वर्गारोहण किया।
पंडितमरण के कथन का उपसंहार एवं बालपंडितमरण के कथन की प्रतिज्ञा
अकारि पण्डितस्येति, सप्रपञ्चा निरूपणा। इदानीं वर्णयिष्यामि, मरणं बालपण्डितम् ॥२१५०॥
इति पण्डित्तमरणम्। अर्थ - इस प्रकार भेद-प्रभेद सहित पंडितमरण का सविस्तार कथन किया, अब आगे बालपंडित मरण का संक्षिप्त विवेचन करूँगा ॥२१५० ।।
इस प्रकार पण्डितमरण का कथन पूर्ण हुआ॥
(११) बालपण्डित मरणाधिकार
बालपंडितमरण का लक्षण संयतासंयतो जीवः, सम्यग्दर्शन-भूषितः ।
यत्तस्य मरणं प्रोक्तं, श्रुतज्ञैर्षालपण्डितम् ॥२१५१ ।। अर्थ - सम्यग्दर्शन से विभूषित जो जीव पंचमगुणस्थानवी - संयतासंयत भी है, श्रुतज्ञैः अर्थात् गणधरादि देवों द्वारा उसके मरण को बालपण्डित मरण कहागया है॥२१५१॥
देशसंयम रूप धर्म का लक्षण पञ्चधाणुव्रतं प्रोक्तं, त्रिधा प्रोक्तं गुणवतम्।
शिक्षाव्रतं चतुर्धा च, धर्मो देशयतेरयम् ।।२१५२॥ अर्थ - पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत,ये बारह प्रकार के व्रत ही देशसंयमी का धर्म कहा गया है। अर्थात् पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत यह देशसंयमी श्रावक का धर्म है ।।२१५२ ।।