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मरणकण्डिका ५६२
निषेधा का लक्षण
निषद्या नातिदूरस्था, विविक्ता प्रासुका घना । कर्तव्यास्ति परागम्या, बाल-वृद्ध गणोचिता ॥। २०४७ ॥
अर्थ - निषद्या नगर आदि से न अति दूर हो और न अति निकट हो, जन- कोलाहल से दूर अर्थात् एकान्त में हो, प्रासुक हो, ठोस भूमि पर हो, मिथ्यादृष्टि जीवों के अगम्य हो एवं बाल-वृद्ध साधु समुदाय वहाँ तक सरलता से पहुँच सके, ऐसे स्थान पर हो । २०४७ ॥
निषद्या की दिशा
वसतेऋते भागे, दक्षिणे पश्चिमेऽपि वा ।
निषद्यका स्थिता या सा, प्रशस्ता परिकीर्तिता ॥ २०४८ ॥
अर्थ - जो निषद्या क्षपक की वसतिका से दक्षिण-पश्चिम के कोण में अर्थात् नैऋत्य दिशा में या दक्षिण दिशा में या पश्चिम दिशा में स्थित हो वह प्रशस्त कही गई है || २०४८ ||
निषद्या का दिशानुसार फल
सर्वस्यापि समाधानं, प्रथमायां तथान्यतः ।
आहारः सुलभोऽन्यस्यां भवेत्सुख - बिहारिता || २०४९ ।।
अर्थ - जहाँ क्षपक की समाधि हुई है उस वसतिका से निषद्या स्थल यदि नैऋत्य दिशा में हो तो सर्वसंघ को समाधि का लाभ होता है। यदि निषद्या दक्षिण दिशा में हो तो संघ को आहार का लाभ सुलभ होता है और यदि निषद्या पश्चिम दिशा में होगी तो संघ का विहार सुखपूर्वक होगा तथा उपकरणों का भी लाभ होगा || २०४९ ॥
तदभावेऽनलाशायां, वायव्यायां हरेर्दिशि । निषद्यकोत्तरस्यां वा, मतेशानस्य वा दिशि । २०५० ॥
क्रमेण फलमेतासु, स्पर्धा राटिश्च जायते । भेदश्चापि तथा व्याधिरन्यस्यप्यपकर्षणम् ॥। २०५१ ।।
अर्थ - उपर्युक्त दिशाओं में निषद्या बनाने योग्य स्थान प्राप्त न हो और यदि वह निषद्या आग्नेय दिशा में, वायव्य दिशा में, पूर्व दिशा में, उत्तर दिशा में अथवा ईशान दिशा में बना ली जाएगी तो हानि होगी। इसका क्रमानुसार फल यह है कि यदि निषद्या आग्नेय में होगी तो संघ में स्पर्धा उत्पन्न हो जाएगी। अथवा 'मैं ऐसा हूँ' 'तुम ऐसे हो' इत्यादि रूप से संघर्ष बढ़ जाएगा। वायव्य दिशा में होने से कलह होगा, पूर्व दिशा में निषद्या होने से संघ में फूट पड़ जाएगी अर्थात् संघभेद हो जाएगा, उत्तर दिशा में निषद्या होने से व्याधि प्रकोप और ईशान दिशा में निषद्या होने से संघ में परस्पर खींचातानी हो जाएगी ।। २०५० २०५१ ॥