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मरणकण्डिका -५६६
शव स्थापित भूमि, संस्तर और रेखाएँ एकदम सम होने चाहिए। पं. आशाधर जी के मतानुसार ये रेखाएँ ऊपर विषम होने से आचार्य का मरण या रोग, मध्य में विषम होने से एलाचार्य को रोग और नीचे विषम होने से साधुओं को रोग होता है।
आर्यिका के शव-विसर्जन की जो विधि कही गई है पं. आशाधर जी ने वही विधि ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका एवं व्रती के लिए भी कही है।
प्रश्न - वर्तमान में साधु के शव को मुनिजन क्यों नहीं ले जाते ?
उत्तर - वर्तमान में साधुजन मगर या ग्राम के मध्य श्रावकों के बीच मन्दिर या धर्मशाला आदि में निवास करते हैं। यहाँ भक्तप्रत्याख्यान संन्यासपूर्वक मरण तो होता है किन्तु श्रावकगण ही काष्ठ का विमान बनवा कर उसमें साधु के शव को स्थापित कर लेते हैं। पश्चात् पूर्व निर्दिष्ट निषद्या स्थान पर्यन्त विधिवत् ले जाते हैं
और विधिवत् ही चिता पर स्थापित कर दाह संस्कार कर देते हैं तथा उस स्थान पछी का चबूतराना , कर चरण स्थापित कर प्रशस्ति लिख देते हैं।
प्रश्न - क्षपक की समाधि हो जाने बाद उनकी पीछी आदि को कहाँ रखते हैं ?
उत्तर - अमितगति आचार्य महाराज ने इस विषय में कुछ नहीं लिखा किन्तु मूलाराधना गाथा १९८६ में कहा गया है कि वे साधुजन निषद्या में उस शव का स्थापन पीछी सहित ही करते हैं। गाथा १९८७ में पीछी रखने का कारण कहा गया है कि यदि क्षपक ने सम्यक्त्व की विराधना पूर्वक मरण कर देव पर्याय प्राप्त की है तो वह देव पीछी सहित अपना शरीर देखकर पुनः सावधान हो जाएगा कि मैं पूर्वभव में मुनि था। इसी प्रयोजन की सिद्धि हेतु वर्तमान में जहाँ क्षपक-शव का दाह-संस्कार करते हैं, वहीं कहीं समीपवर्ती वृक्ष की शाखा पर पीछी और कमण्डलु दोनों बाँध कर टाँग देते हैं।
जघन्य आदि नक्षत्रों में क्षपक का मरण होने पर उसके फल का विवेचन
शान्तिर्भवति सर्वेषामृक्षेल्पे क्षपके मृते।
मध्यमे मृत्युरेकस्य, जायते महति द्वयोः ।।२०६५ ॥ अर्थ - क्षपक का मरण यदि अल्प अर्थात् जघन्य नक्षत्र में होता है तो संघ एवं समाज सभी के लिए कल्याणकारी होता है। यदि मरण मध्यम नक्षत्र में होता है तो संघ में एक का मरण और होता है तथा यदि महानक्षत्र में मरण होता है तो दो का मरण होता है॥२०६५ ।।
प्रश्न - जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट नक्षत्रों के क्या लक्षण हैं और वे कौन-कौन से हैं ?
उत्तर - अमितगति आचार्य ने इस विषय का स्पर्श नहीं किया किन्तु मूलाराधना गाथा १९८९ की टीका में पं. आशाधर जी कहते हैं कि जो नक्षत्र पन्द्रह मुहूर्त तक रहते हैं, उन्हें जघन्य कहते हैं ऐसे नक्षत्र छह हैं। भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति, ज्येष्ठा और शताभिषा। इनमें से किसी एक नक्षत्र या उसके अंश में क्षपक का मरण होता है तो सबका कल्याण होता है।
जो नक्षत्र तीस मुहूर्त तक रहते हैं, उन्हें मध्यम नक्षत्र कहते हैं, ऐसे नक्षत्र पन्द्रह हैं। यथा-अश्विनी,