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मरणकण्डिका - ५६७
कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद और रेवती। इनमें से किसी एक नक्षत्र या उसके अंश में मरण होने पर संघस्थ किसी एक मुनि का मरण होता है।
जो नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त तक रहते हैं, उन्हें उत्कृष्ट नक्षत्र कहते हैं ऐसे नक्षत्र छह हैं। यथा- रोहणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद । इनमें से किसी एक नक्षत्र या उसके अंश में क्षपक का मरण होने पर अन्य दो मुनियों का मरण और होता है।
मध्यम एवं उत्कृष्ट नक्षत्रों में क्षपक का मरण होने पर संघ की रक्षा का उपाय
महन्मध्यम-नक्षत्रे, मृते शान्तिर्विधीयते।
यत्नतो गण-रक्षार्थ, जिनार्चा-करणादिभिः ।।२०६६ ।। अर्थ - मध्यम एवं उत्कृष्ट नक्षत्रों में यदि क्षपक का मरण होता है तो संघ की रक्षा के लिए प्रयत्नपूर्वक जिनेन्द्रदेव की पूजा आदि करा कर शान्ति की जाती है ।।२०६६ ।।
प्रश्न - जिनन्द्रदेव की पूजा-अर्चास ही शान हो जाता है अथवा अन्य भी कोई उपाय है?
उत्तर - संघ की रक्षा हेतु शिवकोट्याचार्य ने मूलाराधना ग्रन्थ में गाथा १९९० एवं १९९१ में जो प्रतिपादित किया है वह द्रष्टव्य है। इन दोनों गाथाओं की दोनों टीकाओं में कहा गया है कि यदि क्षपक का मरण मध्यम नक्षत्र में होता है तो संघ के रक्षणार्थ तृणों का एक पुतला बना कर मृतक के समीप स्थापित कर तीन बार उच्च स्वर से घोषणा करें कि इस नक्षत्रदोष से जो एक अन्य मुनिराज का मरण होने वाला था वे मुनिराज अब चिरकाल तक जीवित रह कर तपस्या करें क्योंकि मैंने उनके स्थान पर यह दूसरा शव स्थापित कर दिया है। यह एक पुतला देने का विधान है।
उत्कृष्ट नक्षत्र में क्षपक का मरण होने पर तृण के दो पुतले शव के साथ स्थापित कर तीन बार उच्च स्वर से घोषणा करें कि इस नक्षत्रदोष से जो अन्य दो मुनिराजों का मरण होने वाला था वे दोनों मुनिराज अब चिरकाल तक जीवित रह कर तपस्या करें क्योंकि मैंने उन दोनों के स्थान पर यह दूसरा और तीसरा पुतला स्थापित किया है।
जिनेन्द्रदेव की अर्चा एवं पूजा के साथ उपर्युक्त प्रक्रिया संघ की रक्षा का उपाय है। प्रश्न - यदि समय पर कुश या तृण न मिलें तो क्या करना चाहिए?
उत्तर - पुतला बनाने के लिए यदि तृण उपलब्ध न हो सके तो ईट-पत्थर आदि के चूर्ण से या केशरचावल के चूर्ण से या भस्म से शव के निकट ऊपरी भाग में 'का' अक्षर एवं निचले भाग में 'य' अक्षर अर्थात् 'काय' शब्द लिखकर दूसरे या तीसरे शव को स्थापित करने का नियोग पूर्ण करना चाहिए।
अथवा जिस स्थान पर क्षपक का शव स्थापित करना है उस स्थान पर पहले चावल आदि के चूर्ण से ऊपर 'का' और नीचे 'य' लिख कर पश्चात् उस पर शव स्थापित करना चाहिए।