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मरणकण्डिका - ३५४
(2) अध्यवधि होष - रसोई हो जाने के लाट संयत को आया हुआ देखकर अथवा संयत के आ जाने के बाद और अधिक चावल आदि डालना अध्यवधि दोष है।
(३) पूर्ति दोष - जिस प्रासुक कांसी आदि के पात्र से मिथ्यादृष्टि साधुओं को आहार दिया गया है उसी पात्र में रखा हुआ अन्न दिगम्बर साधु को आहार में दिया जाय तो पूर्ति दोष लगता है।
(४) मिश्र दोष - प्रासुक और अप्रासुक को मिलाकर आहार देना मिश्र दोष है।
(५) स्थापित दोष - पाक-भाजन से अन्न को निकालकर स्वगृह में अथवा अन्य किसी के घर में स्थापित कर के देना वा एक भाजन से निकालकर दूसरे भाजन में स्थापित करना, उस भाजन से फिर तीसरे में रखना स्थापित दोष है।
(६) बलि दोष - यक्षादि की पूजा के निमित्त बनाया हुआ आहार संयत को देना बलि दोष है।
(७) प्राभृत दोष - इस महीने, इस ऋतु अथवा इस तिथि को मुनियों को आहार दूंगा, इस प्रकार के नियम से आहार देना प्राभृत दोष है।
(८) प्राविष्कृत दोष - हे भगवन् ! यह मेरा घर है। इस प्रकार गृहस्थ के द्वारा घर बतलाकर आहार दिया जाना अथवा भाजनादि का संस्कार करना, भाजन को स्थानान्तर में ले जाना प्राविष्कृत दोष है।।
(९) प्रामृष्य दोष - यतियों के दान के लिए ब्याज देकर वस्तु लाना अथवा थोड़ा कर्ज लेना प्रामृष्य दोष है।
(१०) क्रीत दोष - विद्या से खरीद कर अथवा द्रव्य, वस्त्र, भाजन आदि के विनिमय से अन्नादि खरीद कर लाना और साधु को आहार में देना क्रीत दोष है।
(११) परावर्त्त दोष - अपने घर के चावल, घृत आदि को देकर बदले में दूसरे चावल आदि लाकर आहार देना परावर्त्त दोष है।
(१२) अभिहित दोष - एक ग्राम से दूसरे ग्राम में अथवा एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में ले जाकर साधु को आहार देना अभिहित दोष है। सरल पंक्ति-बद्ध सात घरों से लाया हुआ आहार साधुओं को देने योग्य है, सात घरों के परे स्थित घरों से लाया हुआ आहार साधुओं को देने योग्य नहीं है। इस विधि का उल्लंघन करके आहार देना अभिहित दोष है।
(१३) उद्घाटित दोष - आहार के लिए साधु के आ जाने के अनन्तर मुद्रा आदि का भेद कर या किसी पत्थर आदि से आच्छादित वस्तु को खोल कर देना उद्घाटित दोष है।
(१४) मालिकारोहण दोष - ऊपर भाग में रखी हुई खान-पान आदि की वस्तु को सीढ़ी लगाकर उतारना और साधुओं को देना मालिकारोहण दोष है।
(१५) आच्छेद्य दोष - राजादि के भय से जो आहार दिया जाता है, वह आच्छेद्य दोष है।
(१६) अनिसृष्ट दोष - ईश और अनीश के अनभिमत से अथवा स्वामी और अस्वामी के अनभिमत से आहार देना अनिसृष्ट दोष है।
ये १६ उद्गम दोष श्रावकों के आश्रित हैं।