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मरणकण्डिका - ५११
प्रश्न - माता और बहिन उसी भव में उसी की पत्नियाँ बन जॉय, भला यह कैसे सम्भव है ?
उत्तर - विषयभोगों से उपार्जित पापकर्मों के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। यदि एक शरीर भी धारण करने पर जीव नाना प्रकार के अपवादों और दुखों को प्राप्त होता है और अपनी मानसिक वेदना से उग्र पापबन्ध करता है तब विषयसेवन द्वारा पापकर्म उपार्जित करने वाला पापी पुरुष नाना शरीर धारण करने पर कैसे दुख नहीं पावेगा? अवश्य ही दुख प्राप्त करेगा। क्योंकि मदोन्मत्त एवं बलशाली हाथी द्वारा वेग से फेंकी हुई तीक्ष्ण तलवार जितना दुख नहीं देती, उससे भी अधिक दुख विषयभोग देते हैं, इसीलिए तत्त्वज्ञानी जन विषयों का त्याग कर देते हैं।
* धनदेव (अठारह नाते) की कथा * मालवदेश की उज्जैनी नगरी में राजा विश्वसेन, सेठ सुदत्त और वसंततिलका वेश्या रहती थी। सेठ सुदत्त सोलह करोड़ द्रव्य का स्वामी था। उसने वसंततिलका वेश्याको अपने घर में रख लिया। वह गर्भवती हुई और खाज, खाँसी, श्वास आदि रोगोंने उसे घेर लिया। तब सेठने उसे अपने घरसे निकाल दिया। अपने घर में आकर वसंतुनिलका ने एक न और एक पुत्रीको जन्म दिया। खिन्न होकर उसने रत्न कम्बल में लपेट कर कमला नाम की पुत्री को तो दक्षिण ओर की गलीमें डाल दिया। उसे प्रयाग का व्यापारी सुकेत ले गया
और उसने उसे अपनी सुपुत्रा नामकी पत्नी को सौंप दिया तथा धनदेव पुत्र को उसी तरह रत्नकम्बल से लपेटकर उत्तर ओर की गली में रख दिया। उसे अयोध्यावासी सुभद्र ले गया और उसने उसे अपनी सुव्रता नाम की पत्नी को सौंप दिया। पूर्वजन्म में उपार्जित पापकर्म के उदय से धनदेव और कमला का आपस में विवाह हो गया। एक बार धनदेव व्यापारके लिए उज्जैनी गया। वहाँ वसंततिलका वेश्यासे उसका सम्बन्ध हो गया। दोनों के सम्बन्ध से वरुण नामका पुत्र हुआ। एक बार कमला ने श्री मुनिदत्त से अपने पूर्वभव का वृत्तान्त पूछा। श्री मुनिदत्त ने सब सम्बन्ध बतलाया, जो इस प्रकार है।
उज्जैनी में सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम काश्यपी था। उन दोनों के अग्निभूति और सोमभूति नामके दो पुत्र थे। वे दोनों परदेश से विद्याध्ययन करके लौट रहे थे। मार्ग में उन्होंने जिनमति आर्यिका को अपने पुत्र जिनदत्त मुनि से कुशलक्षेम पूछते हुए देखा तथा सुभद्रा आर्यिका को अपने श्वसुर जिनभद्र मुनिसे कुशलक्षेम पूछते हुए देखा। इस पर दोनों भाइयों ने उपहास किया। जवान की स्त्री बूढी और बूढ़े की स्त्री जवान, 'विधाता ने अच्छा उलट फेर किया है। कुछ समय पश्चात् अपने उपार्जित कर्मों के अनुसार सोमशर्मा ब्राह्मण मरकर उज्जैनी में ही वसन्तसेना की पुत्री वसंततिलका हुई और अग्निभूति तथा सोमभूति दोनों मरकर उसके धनदेव और कमला नाम के पुत्र और पुत्री हुए। ब्राह्मण की पत्नी व्यभिचारिणी काश्यपी मरकर धनदेव के सम्बन्ध से वसंततिलका के वरुण नाम का पुत्र हुई। इस कथा को सुनकर कमला को जातिस्मरण हो आया। उसने मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण किये और उज्जैनी जाकर वसन्त-तिलका के घरमें घुसकर पालने में पड़े हुए वरुण को झुलाने लगी और उससे कहने लगी (१) मेरे पति के पुत्र होने से मेरे पुत्र हो। (२) मेरे भाई धनदेव के पुत्र होने से तुम मेरे भतीजे हो। (३) तुम्हारी और मेरी माता एक ही है, अतः तुम मेरे भाई हो। (४) धनदेव के छोटे भाई होने से तुम मेरे देवर हो। (५) धनदेव मेरी माता वसंततिलका का पति है, इसलिए धनदेव मेरे पिता हैं। उसके भाई होने से तुम मेरे काका हो। (६) मैं वेश्या वसंततिलका की