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मरणकण्डिका - ५४८
और शुक्ल के नाम वाली ये लेश्यायें छह हैं। द्रव्य और भाव के भेद से ये दो प्रकार की होती हैं। द्रव्य लेश्या शरीर के काले-गोरे वर्णरूप होती है और भाव लेश्या मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग से प्राणियों के जो संस्कार बन जाते हैं, उस रूप होती है अर्थात् मिथ्यात्व आदि के कारण जीव के जो शुभाशुभ भाव होते हैं वह भाव लेश्या है । शुभ और अशुभ के भेद से भाव लेश्या दो प्रकार की है। इनमें से प्रारम्भ की तीन अर्थात् कृष्ण, नील, कापोत अशुभ हैं और पीत, पद्म, शुक्ल ये तीन शुभ हैं। अशुभ लेश्याओं में परिणामों की तरतमता रूप हानि-वृद्धि तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम रूप से होती है। जैसे कापोतलेश्या तीव्र है, नील लेश्या तीव्रतर है और कृष्ण लेश्या तीव्रतम है। इसी प्रकार शुभ लेश्याओं में यह कषाय परिणामों की तरतमता मन्द, मन्दतर और मन्दतम रूप से होती है। जैसे पीतलेश्या मन्द, पद्यलेश्या मन्दतर और शुक्ल लेश्या मन्दतम है। परिणामों की तरतमता एक उदाहरण द्वारा समझी जा सकती है।
छह व्यापारी व्यापार हेतु देशान्तर जा रहे थे। मार्ग भूल जाने से जंगल में भटक रहे थे, क्षुधा से भी पीड़ित थे, अनायास आम्रफलों से युक्त एक विशाल वृक्ष दिखाई दिया, उसे देखते ही उन छह पथिकों के भिन्नभिन्न प्रकार के परिणाम बनते हैं। यथा-जो पथिक फलों से लदे वक्ष को जड़ से उखाड का फल खान है उसके परिणाम कृष्ण लेश्या जन्य जो स्कन्ध से पाट त साना चाहता है उसके परिणाम नील लेश्या के हैं, जो मात्र फल यक्त एक शाखा काटकर फल खाना चाहता है उसके परिणाम कापोत लेश्या के हैं, जो फल युक्त उपशाखा या आम्र का गुच्छा तोड़कर फल खाना चाहता है, उसके परिणाम पीतलेश्याजन्य हैं, जो मात्र फल तोड़ कर ही खाना चाहता है उसके परिणाम पद्यलेश्या जन्य हैं और जो पथिक नीचे भूमि पर गिरे हए फल उठाकर अपनी क्षधा शान्त करना चाहता है. उसके परिणाम शक्ल लेश्या जन् थके हुए थे, सभी भूखे थे और उन सबने वृक्ष भी एक साथ देखा था किन्तु उनके परिणाम भिन्न-भिन्न हो रहे
प्रश्न - दृष्टान्तर्गत छह लेश्याओं से युक्त पुरुषों के चिह्न क्या-क्या हैं?
उत्तर - जो अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय से युक्त हैं, निर्दय एवं कलहप्रिय हैं, दुराग्रही हैं, दुष्ट हैं, सतत वैरभाव रखने वाले हैं और मद्य-मांसादि के सेवन में आसक्त रहते हैं उन्हें कृष्णलेश्या परिणाम वाले जानना चाहिए।
जो मायावी, छली-कपटी, घमण्डी, विषयलम्पटी, आलसी, बुद्धिहीन, अधिक निद्रालु, धन-धान्य में आसक्त एवं नाना प्रकार के आरम्भ और परिग्रहों में मोहित रहने वाले हैं, वे नीललेश्या परिणाम वाले होते
जो शोक एवं भय से युक्त होते हैं, बात-बात में रूसते हैं, लड़ाई हो जाने पर तत्काल मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं, पर की निन्दा और अपनी प्रशंसा करते रहते हैं, पर का तिरस्कार करते हैं, कषाय के आवेग में हानि-लाभ भी नहीं देखते हैं और अपनी प्रशंसा सुनकर मन-मन आह्लादित होते रहते हैं, वे कापोतलेश्या के परिणाम वाले होते हैं।
जो सर्वत्र समदृष्टि रहते हैं, कृत्य-अकृत्य एवं हित-अहित का विवेक रखते हैं और दया, दान तथा पूजा में रत रहते हैं, उन्हें पीत लेश्या के परिणाम वाले जानना चाहिए ।