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मरणकण्डेिका-५३७
अर्थ - जन्म, मरण और जरा के कारणभूत तथा दुख देने में समर्थ ऐसे कर्मद्वार को अर्थात् आम्रवों को रोकने वाला चारित्र जिसका उज्ज्वल एवं निर्दोष है, इस संसार में उसी का मनुष्य-जन्म सफल है ।।१९५५ ।।
यथा यथा विवर्धन्ते, निर्वेद-प्रशमादयः।
प्रयात्यासन्नतां पुंसः, सिद्धि-लक्ष्मीस्तथा तथा॥१९५६ ।। ___ अर्थ - मनुष्य में जैसे-जैसे निर्वेद अर्थात् वैराग्य, उपशम, दया एवं चित्त की निग्रहता आदि वृद्धिंगत होते जाते हैं, वैसे-वैसे सिद्धिरूपी लक्ष्मी निकट आती जाती है ।।१९५६॥
द्वादशात्मक-तपोरयन्त्रितं, तत्त्वबोध-रुचि-वृत्त-नेमिकम् । धर्मचक्रमनयद्यमाहतं, विष्टपे विजयतामनश्वरम् ॥१९५७ ।।
इति धर्मानुप्रेक्षा। अर्थ - भगवान् जिनेन्द्र का धर्मचक्र जगत् में जयवन्त हो, क्योंकि यह धर्मचक्र तत्त्वरुचि अर्थात् सम्यग्दर्शन रूपी तुंबा अर्थात् नाभि से सुशोभित है, तत्त्वज्ञान अर्थात् सम्यग्ज्ञान रूपी दृढ़ पहियों से युक्त है, वृत्त अर्थात् उज्ज्वल चारित्ररूपी नेमि अर्थात् हाल इसके ऊपर चढ़ी हुई है और बारह प्रकार के तप अथवा बारह अंग रूपी आरों से नियन्त्रित है॥१९५७ ।।
इस प्रकार भगवान् जिनेन्द्र देव द्वारा प्रतिपादित रत्नत्रय धर्म जीवों को परम कल्याणकारी है, अनुपम है, महामंगल स्वरूप है, परमशान्तिदायक है, आत्मस्वरूपात्मक है और कल्पवृक्ष के सदृश महान फलदायक है। ऐसा चिन्तन करना धर्म-अनुप्रेक्षा है।
इस प्रकार धर्मानुप्रेक्षा का वर्णन पूर्ण हुआ ॥११॥
बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा
बोधि आदि की क्रमशः दुर्लभता धर्मे भवति सम्यक्त्व-ज्ञान-वृत्त-तपोमये ।
दुर्लभा भ्रमतो बोधिः, संसारे कर्मतोऽङ्गिनः॥१९५८॥ अर्थ - कर्म के वशवर्ती हो संसार परिभ्रमण करने वाले जीव के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र एवं सम्यक् तप रूप धर्म में बोधि अर्थात् रत्नत्रय की प्राप्ति अति दुर्लभ है ।।१९५८ ।।
मनुष्य पर्याय की दुर्लभता संसारे देहिनोऽनन्ते, मानुष्यमतिदुर्लभम् ।
समिला-युग-साङ्गत्वं, पयोधाविव दुर्गमे ॥१९५९॥ अर्थ - जैसे अपार जलराशि से भरे समुद्र के पूर्वभाग में समिला अर्थात् दो लकड़ी और अपरभाग में युग अर्थात् जुवा डाल देने पर बहते-बहते दोनों का मिल जाना और उन लकड़ियों का जुवा के छिद्र में स्वयमेव प्रवेश कर जाना अतिदुर्लभ है, वैसे ही इस अनन्त अपार संसार में अर्थात् चौरासी लाख योनि एवं एक सौ साढ़े निन्यानवे लाख करोड़ कुलों में मनुष्य पर्याय का प्राप्त होना अतिदुर्लभ है।।१९५९ ।।