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मरणकण्डिका -५४३
इस ध्यान के स्वामी क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थानवी चतुर्दश पूर्वो के ज्ञान में दक्ष साधु हैं। अर्थात् यह ध्यान वे महात्मा ही कर सकते हैं, अन्य नहीं ।।१९७२ ।।
प्रश्न - दूसरे शुक्लध्यान का शब्दार्थ क्या है और दोनों ध्यानों के कार्य क्या-क्या है?
उत्तर - यहाँ एकत्व का अर्थ एकरूपता है, श्रुत का अवलम्बन लिया जाता है अत: वितर्क है एवं परिवर्तन रहित होने से अवीचार है, अत: इसका सार्थक नाम एकत्व वितर्कावीचार है।
प्रथम शुक्लध्यान के द्वारा दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में मोहनीय कर्म को नष्ट किया जाता है, और यह दूसरा शुक्लध्यान रत्नों की दीपशिखावत् अकम्प, अडोल एवं बदलाहट से रहित होता है। यह ध्यान किसी एक योग तथा किसी एक श्रुतवाक्य के आश्रय से प्रवृत्त होता है। इसके स्वामी क्षीणमोह गुणस्थानवर्ती योगीश्वर हैं, वे बारहवें गुणस्थान के अन्तसमय में इस ध्यान के बल से ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिया कर्मों को नष्ट कर देते हैं।
तृतीय शुक्लध्यान का स्वरूप एवं स्वामी सर्वभाव-गतं शुक्लं, विलोकित-जगत्त्रयम् ।
सर्वसूक्ष्मक्रियो योगी, तृतीयं ध्यायति प्रभुः ।।१९७३॥ अर्थ - सर्व द्रव्य और सर्व पर्यायगत तथा तीन लोक के विलोकन में समर्थ सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाती नामका तीसरा शुक्ल ध्यान है। इस ध्यान के स्वामी तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोगकेवली जिनेन्द्र हैं ।।१९७३ ।।
प्रश्न - इस ध्यान का अन्वर्थ नाम क्या है, इसका कार्य क्या है और इसके स्वामी कौन हैं?
उत्तर - इस ध्यान में सूक्ष्म क्रिया का अप्रतिपात है अर्थात् अभाव है अर्थात् इस ध्यान में एक मात्र काययोगरूप सूक्ष्म क्रिया का अस्तित्व पाया जाता है अतः इसका सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती यह अन्वर्थ नाम
आशय यह है कि यह शुक्लध्यान वितर्क और वीचार से रहित है। यह ध्यान तेरहवें गुणस्थान में भी तब होता है जबकि देश-देश का विहार एवं दिव्यध्वनि रूप क्रियाएँ समाप्त होकर बाह्य क्रियारूप योग निरोध हो जाता है। इसमें श्वासोच्छ्वासादि क्रिया सूक्ष्म रह जाती है अर्थात् यहाँ केवल सूक्ष्मकाय-योग क्रिया का अस्तित्व रहता है। मनोवर्गणा के अवलम्बन से उत्पन्न होने वाला मनोयोग और वचनवर्गणा के अवलम्बन से होने वाला बचनयोग नहीं होता। यह शुक्लध्यान त्रिकालवर्ती अनन्त सामान्य-विशेषात्मक धर्मों से युक्त छह द्रव्यों को एक साथ प्रकाशित करता है अतः सर्वगत है।
प्रश्न - सर्वगत लक्षण तो केवलज्ञान का है, तब क्या केवलज्ञान को ध्यान कहते हैं ?
उत्तर - ध्यान का लक्षण “..............एकाग्रचिन्ता-निरोधो ध्यानम्..............” किया गया है। इस लक्षणात्मक वाक्य में “चिन्ता" शब्द ज्ञान सामान्य का वाचक है, अत: ज्ञान की निश्चलता ही ध्यान है, यह सिद्ध हुआ। केवलज्ञान सर्वथा निश्चल ही है इसलिए सयोगकेवली भगवान का यह सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपात नामक ध्यान केवलज्ञानमूलक है। केवलज्ञान को ध्यान कहने का मूल कारण भी यही है। ज्ञान की