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मापासण्डिका - ३५५
१६ उत्पादन दोष (१) धातृ दोष - बालकों के लालन-पालन की शिक्षा देकर आहार ग्रहण करना धातृ दोष है। (२) दूतत्व दोष - दूरस्थ बन्धुओं के समाचार लाना-ले जाना दूतत्व दोष है।
(३) भिषग्वृत्ति दोष - आहार के लिए गजचिकित्सा, बाल-चिकित्सा, विषचिकित्सा आदि बतलाना भिषावृत्ति दोष है।
(४) निमित्त दोष - स्वर, अन्तरिक्ष, भौम, अङ्ग, व्यजन, छिन्न, लक्षण और स्वप्न-इन आठ निमित्त कारणों को बताकर भिक्षा उपार्जन करना निमित्त दोष है।
(५) इच्छाविभाषण दोष - किसी श्रावक के यह पूछने पर कि हे मुनिवर ! दीन-हीन प्राणियों को दान देने से पुण्य होता है या नहीं ? उस श्रावक की इच्छानुसार उत्तर देना इच्छाविभाषण दोष है।
(६) पूर्वस्तवन दोष - हे जिनदत्त ! तू जगत् में विख्यात दाता है-तेरे पिता भी महान् दानी थे- इस प्रकार प्रशंसा-वचनों द्वारा गृहस्थ को आनन्दित करके आहार करना पूर्वस्तवन दोष है।
(७) पश्चात्स्तवन दोष - आहार करने के बाद हे जिनदत्त ! तू बड़ा दानी है, तेरे घर के आहार जैसा आहार किसी के यहाँ नहीं बनता-इस प्रकार की प्रशंसा करना पश्चात्स्तवन दोष है।
(८) क्रोध दोष - क्रुद्ध होकर आहार लेना क्रोध दोष है। (९) मान दोष - मान-कषाय सहित आहार लेना मान दोष है। (१०) माया दोष - मायाचार से आहार लेना माया दोष है। (११) लोभ दोष - लोभ-कषाय सहित आहार लेना लोभ दोष है। (१२) वश्य कर्म - वशीकरण मन्त्र के द्वारा आहार प्राप्त करना वश्यकर्म दोष है। (१३) स्वगुणस्तवन दोष - अपने कुल, जाति, तप आदि का गुणगान करना स्वगुणस्तवन दोष है।
(१४) मन्त्रोपजीवन दोष - अङ्ग-शृंगारकारी पुरुषों को पठित सिद्ध आदि मन्त्रों का उपदेश देना मन्त्रोपजीवन दोष है।
(१५) चूर्णोपजीवन दोष - चूर्णादि का उपदेश देकर अन्नोपार्जन करना चूर्णोपजीवन दोष है।
(१६) विद्योपजीवन दोष - आहार के लिए गृहस्थों को सिद्ध-विद्या साधित-विद्या प्रदान करना विद्योपजीवन दोष है। ये १६ उत्पादन दोष पात्र के आश्रित हैं।
१० एषणा दोष (१) शंकित दोष - यह वस्तु सेव्य है अथवा असेव्य-ऐसी शंका करते हुए उस वस्तु को आहार में लेना शंकित दोष है।