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इनके अतिरिक्त और दोष हैं उन्हें बताते हैं
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(१)
भरणकण्डिका
आहारमें नख, बाल, हड्डी, मांस, पीप, रक्त, चर्म द्वीन्द्रिय आदि जीवोंका कलेवर आजाय तो आहारको छोड़ देते हैं तथा कण, कुंड, बीज, कंद, मूल और अछिन्न फल आजाय तो यथाशक्य परिहार या अंतराय करते हैं - आहारको छोड़ देते हैं।
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बत्तीस अन्तराय
काक आहारको जाते समय या आहार लेते समय यदि कौवा आदि बींट कर देवे, तो काक नामका अंतराय है।
अमेध्य अपवित्र विष्ठा आदिसे पैर लिम हो जावे ।
छर्दि तपन हो जावे |
रोधन- आहारको जाते समय कोई रोक देवे ।
रक्तस्राव-अपने शरीरसे या अन्यके शरीरसे चार अंगुल पर्यंत रुधिर बहता हुवा दीखे
अश्रुपात दुःखसे अपने या परके अश्रु गिरने लगे ।
जान्वधपरामर्श- यदि मुनि जंघाके नीचेका भाग स्पर्श करले ।
जानूपरिव्यतिक्रम-यदि मुनि जंघाके ऊपरका व्यतिक्रम कर ले अर्थात् जंघासे ऊँची सीढ़ी पर इतनी ऊँची एक ही डंडा या सीढ़ी पर चढ़े तो जानूपरिव्यतिक्रम अंतराय है । नाभ्योनिर्गमन - यदि नाभिसे नीचे शिर करते आहारार्थ जाना पड़े।
(९)
(१०) प्रत्याख्यात सेवन जिस वस्तुका देव या गुरुके पास त्याग किया है वह खानेमें आ जाय । (११) जंतुवध कोई जीव अपने सामने किसी जीवका वध कर देवे ।
(१२) काकादि पिंडहरण- कौवा आदि हाथसे ग्रासका अपहरण कर ले।
(१३) ग्रासपतन - आहार करते समय मुनिके हाथसे ग्रास प्रमाण आहार गिर जावे ।
(१४) पाणी जंतुबंध - आहार करते समय कोई मच्छर, मक्खी आदि जंतु हाथमें मर जावे ।
(१५) मांसादि दर्शन - मांस, मद्य या मरे हुए का कलेवर देख लेनेसे अंतराय है।
(१६) पादांतर जीव-यदि आहार लेते समय पैरके बीचमें से पंचेन्द्रिय जीव चूहा आदि निकल
जाय ।
(१७) देवाद्युपसर्ग - आहार लेते समय देव, मनुष्य या तिर्थंच आदि उपसर्ग कर देवें ।
(१८) भाजनसंपात - दाताके हाथसे कोई बर्तन गिर जाय ।
(१९) उच्चार यदि आहारके समय शरीर से मल निकल जावे ।