________________
मरणकण्डिका - ३८७
कालतक भटकता रहा। पुनः सिंहकी पर्यायमें चारणऋद्धिधारी मुनियुगलसे धर्मोपदेश सुनकर सम्यक्त्वको ग्रहण क्रिया और महादुःखदायी मिथ्यात्वका त्याग किया। आगामी कुछ भवोंके अनंतर अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर बनकर सिद्धपद पाया। इसप्रकार मरीचिने मिथ्यात्व शल्यके कारण घोर कष्ट सहा ।
निर्यापकाचार्य द्वारा संस्तुत साधुवर्ग के साथ-साथ क्षपक को महाव्रत-आदि के निर्दोष परिपालन हेतु उपदेश
प्रव्रज्यागंत्रिकां गुप्ति-चक्रां ज्ञान-महाधुरम् । समित्युक्षाणमारुह्य, क्षपको दर्शनादिकम् ॥१३५२ ।। प्रस्थितः साधु-सार्थेन, व्रतभाण्डभृता सह।
सिद्धि-सौख्य-महाभाण्डं, ग्रहीतुं सिद्धि-पत्तनम् ॥१३५३॥ अर्थ - जिसमें तीन गुप्ति रूप पहिये लगे हैं, जो ज्ञानरूपी महाधुरा से युक्त है और समितिरूपी बैलों द्वारा ले जाई जाती है ऐसी जिन-दीक्षारूपी गाड़ी है। महाव्रतरूपी माल साथ लेकर जाने वाले अन्य व्यापारियों के साथ एक क्षपक साधुरूपी व्यापारी अपने सम्यग्दर्शनादि को लेकर उस गाड़ी पर चढ़ जाता है और निर्वाण सुखरूपी माल खरीदने के लिए बह निर्वाणनगर के प्रति प्रस्थान कर देता है ।।१३५२-१३५३ ।।
सार्थः संस्क्रियमाणोऽसौ, भीमां जन्म-महाटवीम् ।
आचार्य-सार्थवाहेन, महोद्योगेन लङ्यते ।।१३५४ ।। अर्थ - उन व्यापारियों के संघाधिपति निर्यापकाचार्य हैं। उनके द्वारा समीचीन मार्गदर्शन प्राप्त कर वह आराधक साधु समुदाय संसाररूपी भयावह अटवी को महान् उद्योग अर्थात् पुरुषार्थ के साथ पार कर जाता है।।१३५४॥
तं भावना-महाभाण्डं, त्रायते भव-कानने ।
कषाय-व्यालतः सूरिरिन्द्रिय-स्तेनतस्तथा ॥१३५५ ॥ अर्थ - वे सार्थवाहियों के संघाधिपति निर्यापकाचार्य भावनारूपी बहुमूल्य माल ले जाने वाले साधुसमुदाय की उस संसार रूपी भयंकर वन में कषायरूपी अनेक जंगली हिंसक पशुओं से एवं इन्द्रियविषयरूपी चोर लुटेरों से रक्षा करते हैं ।।१३५५ ।।
प्रश्न - भावनारूपी बहुमूल्य माल क्या है और इस श्लोक का तात्पर्य अर्थ क्या है ?
उत्तर - यहाँ पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं ही बहुमूल्य धन कहा गया है। संसार रूपी वन में पद-पद पर कषाय रूपी हिंसक पशु और स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण एवं शब्दादि इन्द्रिय विषय रूपी चोर व्याप्त हैं। इनके अर्थात् इष्टानिष्ट इन्द्रिय विषयों के निमित्त से उत्पन्न होने वाले राग-द्वेष प्रमादी साधु के चारित्र को नष्ट कर देते हैं, किन्तु संघाधिपति निर्यापकाचार्य क्षएक सहित सर्व संघ को ध्यान एवं अध्ययन में लगा कर