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मरणकण्डिका ४६९
अर्थ- जो कर्मोदय (देवायु की पूर्णता और मनुष्य या निर्यचायुका उदय) विक्रियाशक्ति सम्पन्न देवों को भी स्वर्ग से गिरा देता है, उस कर्मोदय को अन्य सामान्य मनुष्यादि को गिरा देने में या दुखी करने में परिश्रम नहीं होसकता ||१७०३ ॥
कर्मणा पततीन्द्रे तु परस्य क्व व्यवस्थिति: ।
पतति वातेन शुष्क र निति ॥ १७०४ ॥
अर्थ - जिस वायु से मेरु सदृश पर्वतों का भी पतन हो जाता है उस वायु के सामने सूखा पत्ता कैसे ठहर सकता है ? इसी प्रकार जो कर्म शक्तिशाली इन्द्र को भी गिरा देता है अर्थात् दुखी कर देता है उसके सामने अन्य की अर्थात् तुम्हारे जैसे क्षीण-बली एवं मरणोन्मुख मनुष्य की क्या स्थिति या गिनती है ? || १७०४ ॥ बलीयेभ्यः समस्तेभ्यो, बलीयः कर्म निश्चितम् ।
तद्बलीयांसि मृद्नाति, कमलानीव कुञ्जरः ।। १७०५ ।।
अर्थ - जगत् में जितने बलशाली पदार्थ हैं उन सब में सर्वाधिक बलवान् कर्म है। जैसे हाथी कमलों को मसल देता है या निगल जाता है, वैसे ही कर्म सभी बलवान् पदार्थों को अर्थात् कोट, प्राकार, खाई, द्रव्य, ज्ञान, सेना एवं परिवार आदि सर्वबलों 'नष्ट कर देता है ॥ १७०५ ॥
कर्मोदयमिति ज्ञात्वा दुर्निवारं सुरैरपि ।
मा कार्षीर्मानसे दुःखमुदीर्णे सति कर्मणि ।।१७०६ ॥
अर्थ - कर्मोदय दुर्निवार है, वह देवों द्वारा भी रोका नहीं जा सकता, ऐसा जान कर हे क्षपक ! आये हुए इस कर्मोदय में तुम मन में दुख मत करो अर्थात् आगत पीड़ा को शान्तिपूर्वक सहन करो || १७०६ || विषादे रोदने शोके, संक्लेशे विहिते सति ।
न पीडोपशमं याति, न विशेषं प्रपद्यते ॥ १७०७ ॥
अर्थ - विषाद करने पर, रोने पर, शोक करने पर तथा संक्लेश करने पर भी पीड़ा शान्त नहीं होती और उसमें कोई विशेषता भी नहीं आती है ।। १७०७ ॥
नान्योऽपि लभ्यते कोऽपि संक्लेश-करणे गुणः । केवलं बध्यते कर्म, तिर्यग्गति - निबन्धनम् ॥ १७०८ ।।
अर्थ - हे क्षपक ! संक्लेश आदि करने से तुम्हें कोई विशिष्ट गुण प्राप्त होने वाले नहीं हैं अपितु तिर्यंचगति का कारणभूत कर्मबंध ही होगा || १७०८ ॥
प्रश्न संक्लेश आदि करने से कौनसे लाभ नहीं होंगे ? और तिर्येच गति का बन्ध क्यों होगा ?
उत्तर- बुद्धिमान मनुष्य वही कार्य प्रारम्भ करते हैं जिसमें उन्हें कोई लाभ होता है। मुमुक्षु क्षपक यदि दुख, शोक या संक्लेश आदि करता है तो उसे कोई भी लाभ नहीं होता, कारण रोने, चिल्लाने से रोगजन्य पीड़ा का शमन नहीं होता, भूख-प्यास के कारण विषाद करने से भी निर्यापकाचार्य असमय में, अयोग्य एवं त्याग किये