________________
मरणकण्डिका - ५१०
उत्तर - समुद्र जल से भरा रहता है, संसार दुखों से भरा हुआ है, समुद्र में भंवर उठती हैं, संसार में चौरासी लाख योनि रूप भँवर हैं, समुद्र में पाताल होते हैं, जिनमें प्रवेश करके निकलना कठिन होता है, संसार में अनन्तकाय निगोद रूप पाताल हैं उसमें भी प्रवेश करके निकलना कठिन है, समुद्र तट पर बेला-पत्तन होते हैं, संसार में चार गति रूप बेला-पत्तन हैं जहाँ जीव कुछ समय तक ठहर लेता है। समुद्र मगर-मत्स्यादि जलचर जीवों से भरा रहता है, संसार भी राग, द्वेष, मद, मोह एवं लोभादि मगरमच्छों से भरा हुआ है, समुद्र तरंगों से तरंगित होता रहता है संसार एकेन्द्रिय आदि अनेक जाति रूप तरंगों से तरंगित है, समुद्र में बुबुदे उठते हैं, संसार में त्रस-स्थावर जीव रूप बुबुदे उठते रहते हैं तथा समुद्र में आवर्त उठते हैं, संसार में जन्म, मरण एवं जरा रूप
आवर्त हैं। जैसे समुद्र की सैर करने के लिए जहाज एवं खेवटिया होता है जो घुमाता रहता है, वैसे ही संसार रूपी समुद्र में जीवरूपी जहाज को कर्मरूपी खेवटिया अनादिकाल से निरन्तर भ्रमण करा रहा है।
एक-द्वि-त्रि-चतुः-पञ्च-हृषीकाणामनन्तशः।
जातयः सकला भ्रान्ता, देहिना भ्रमता भवे ।।१८६३ ॥ अर्थ - संसार में भ्रमण करते हुए इस जीव ने एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, व्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जासियों अनन्त बारा किला है।।१८५३.
गृह्णीते मुञ्चमानोऽङ्गी, शरीराणि सहस्रशः ।
भ्रमति द्रव्य-संसारे, घटीयन्त्रमिवानिशम् ॥१८६४ ।। अर्थ - जैसे घटी यन्त्र पूर्व जल का त्याग और दूसरे-दूसरे जल का ग्रहण करते हुए सतत घूमता रहता है वैसे ही द्रव्यसंसार में पूर्व-पूर्व शरीरों को छोड़ते हुए और नवीन शरीरों को ग्रहण करते हुए जीव निरन्तर भ्रमण कर रहा है ।।१८६४॥
प्रश्न - 'द्रव्यसंसार किसे कहते हैं और संसारभ्रमण के कितने भेद हैं ?
उत्तर - नाना प्रकार के शरीरों को द्रव्य कहते हैं, इन शरीरों को धारण कर जीव का संसार में जो भ्रमण होता है उसे द्रव्य-संसार कहते हैं । द्रव्य परिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन, काल-परिवर्तन, भव परिवर्तन एवं भाव परिवर्तन के भेद से संसार भ्रमण पाँच प्रकार का है।
द्रव्य परिवर्तन बहुसंस्थान-रूपाणि, चित्र-चेष्टा-विधायकः।
रङ्गस्थ-नट-वज्जीवो, गृह्णीते मुञ्चते भवे ॥१८६५ ॥ अर्थ - जैसे रंगभूमि में प्रविष्ट होने वाला नट अनेक प्रकार के रूपों को धारण करता है और नाना प्रकार की चेष्टाएँ करता है वैसे ही इस द्रव्य संसार में भ्रमण करता हुआ यह जीव अनेक आकारादि रूप शरीरों को अनेक चेष्टाओं सहित पुन:पुनः धारण करते एवं छोड़ते हुए द्रव्य परिवर्तन करता है ।।१८६५ ।।
प्रश्न - द्रव्य-परिवर्तन के कितने भेद हैं और उनका स्वरूप क्या है ? उत्तर - द्रव्य परिवर्तन के दो भेद हैं। नोकर्म द्रव्य परिवर्तन और कर्मद्रव्य परिवर्तन ।