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मरणकण्डिका - ३६६
इस प्रकार पाँच महाव्रतों की पाँच-पाँच भावनाओं में अमितगति आचार्य, वट्टकेर स्वामी, उमास्वामी और गौतम स्वामी के विवेचन में सत्य-महाव्रत की भावनाओं में तो समानता है किन्तु शेष में जो क्वचित् अन्तर है वह भाव की अपेक्षा तो सदृश ही है, नाम से अवश्य भेद है।
भावनाओं का माहात्म्य भावना भावयन्नेताः, संयतो व्रत-पीडनम् ।
विदधाति न सुप्तोऽपि, जागरूकः, कथं पुनः ।।१२६९।। अर्थ - इन पच्चीस भावनाओं को भाने वाला साधु गहरी निद्रा में सोता हुआ भी अपने व्रता का घात नहीं करता अर्थात् व्रतों में दोष नहीं लगाता, तब जाग्रत अवस्था में तो दोष कैसे लगा सकता है? ॥१२६९ ।।
क्षपक को आचार्य का उपदेश त्वमतः समिती: पञ्च, भावयस्वैक-मानसः । महाव्रतान्यखण्डानि, निश्छिद्राणि भवन्ति ते॥१२७० ।। भावनाः समिति-गुप्तयो यत्तेर्वर्धयन्ति फलदं महाव्रतम् । शर्मकारि रजसां निरासकाश्चारु-सस्यमिव काल-वृष्टयः ॥१२७१ ।।
इति महाव्रत-वृष्टिः। अर्थ - इन भावनाओं का माहात्म्य जान कर हे क्षपक ! तुम एकाग्न मन से इन भावनाओं को भावो और पाँच समितियों का पालन करो। इससे तुम्हारे महाव्रत अखण्ड और निर्दोष बने रहेंगे ।।१२७० ।।
हे क्षपक ! जैसे धूल-मिट्टी आदि का निरसन करने वाली समायानुकूल होने वाली वर्षा सुन्दर एवं सुखदायक धान्य की वृद्धि करती है, उसी प्रकार पच्चीस भावनाएँ, पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ, मुनि को मुक्तिरूपी फल देने वाले महाव्रतों की वृद्धि करती हैं, अत: इनका प्रमाद रहित होकर पालन करो।।१२७१॥
इस प्रकार महाव्रतों की वृद्धि करने वाली भावनाओं का वर्णन समाप्त । शल्य व्रतरूप परिणामों के घात में निमित्त होते हैं, अत: उनके त्याग का उपदेश
महाव्रतानि जायन्ते, निःशल्यस्य तपस्विनः ।
निदान-वञ्चना-मिथ्यादर्शनैर्हन्यते व्रतम् ।।१२७२ ।। अर्थ - नि:शल्य तपस्वी के ही महाव्रत होते हैं, क्योंकि निदान, माया और मिथ्यादर्शन इन तीन शल्यों द्वारा व्रतों का घात होता है।।१२७२ ।।
प्रश्न - शल्य किसे कहते हैं ? और वे कौन-कौन से हैं ?
उत्तर - 'शृणाति' अर्थात् जो कष्ट देता है उसे शल्य कहते हैं। जैसे शरीर में घुस जाने वाला बाण या काँटा कष्ट देता है, वैसे ही अन्तरंग में घुसा हुआ मिथ्यात्वादि रूप परिणाम प्राणी को कष्ट पहुँचाने में निमित्त है अतः उसे भी 'शल्य' कहा जाता है। मिथ्यात्व, माया और निदान-ये तीन शल्य होते हैं।