________________
मरणकण्डिका - ३६१
प्रश्न - इन भावनाओं के क्या लक्षण हैं ?
उत्तर - मनोगुप्ति और समितियों के लक्षण पूर्व में कहे जा चुके हैं, सूर्य के स्पष्ट प्रकाश में शोधन करके आहार-पान ग्रहण करना आलोकित आहार-पान नाम की पाँचवीं भावना है।
प्रश्न - एषणा के लिए कौन-कौन से काल कहे गये हैं?
उत्तर - एषणा अर्थात् आहार की खोज के लिए मुख्यतः भिक्षा-काल, बुभुक्षा काल और अवग्रह काल के भेद से तीन काल कहे गये हैं।
भिक्षाकाल - अमुक मासों में, अमुक ग्राम एवं नगरों में, अमुक मुहल्ले में एवं अमुक कुल आदि में उनके भोजन का कौन सा समय है, धुंआ आदि के चिह्न देखकर भिक्षा के समय का निर्धारण करना।
बुभुक्षा काल - मेरी क्षुधा आज मन्द है, मध्यम है या तीव्र है, इस प्रकार अपने शरीर की स्थिति की परीक्षा करना।
___ अवग्रह काल - मैंने पहले अमुक-अमुक का त्याग किया था कि मैं इस प्रकार का आहार नहीं लूंगा और आज में यह-यह नियम और लूँगा। या आज मेरा यह नियम है, इस प्रकार का विचार करना।
प्रान । साहार को सहते समय को को सायानियाँ आवश्यक है ?
उत्तर - आहार को जाते समय ईर्या समिति से चार हाथ जमीन देखकर चलना, न अधिक शीघ्रता से. न रुक-रुक कर तथा किसी भी प्रकार वेग एवं उद्वेग के बिना गमन करना चाहिए। गमन के समय दोनों हाथ लटकते हों, चरण निक्षेप अधिक अन्तराल से न हो, शरीर विकार एवं कुचेष्टा रहित हो, सिर थोड़ा झुका हुआ हो, मार्ग में जल एवं कीचड़ न हो एवं त्रस जीवों की तथा हरितकाय की बहुलता न हो, तथा यदि मार्ग में ऊँट, बैल, हाथी आदि पशुओं की या कलहकारी स्त्री-पुरुषों की बहुलता हो तो अपना मार्ग बदल दें, अथवा उनसे दूर होकर निकलें, पक्षी तथा तृण खाने वाले मृगादि पशु भयभीत न हों, और अपना भोजन-पान छोड़कर न भागें। आवश्यकता होने पर पीछी से अपने शरीर की प्रतिलेखना करते जावे।
प्रश्न - गमनागमन करते हुए शरीर की प्रतिलेखना की आवश्यकता क्यों होगी ?
उत्तर - यदि मार्ग में निरन्तर इधर-उधर फलादि बिखरे पड़े हों या त्रसजीवों की बहुलता होने से या मार्ग का मोड़ आदि आ जाने से मार्ग बदलना पड़े तो, या छाया से धूप में, धूप से छाया में जाना पड़े तो, या भिन्न वर्णवाली भूमि में प्रवेश करना पड़े तो पीछी से अपने शरीर की प्रतिलेखना आवश्यक है।
प्रश्न - आहार के लिए कौन-कौन स्थान त्याज्य हैं ?
उत्तर - जिस घर में गाना-नाचना हो रहा हो, झण्डियाँ लगी हों उन घरों में न जावें। तथा मतवाले, शराबी, जुआरी, वेश्या, लोकनिन्दित कुल, शूद्र, यज्ञशाला, नाट्यशाला, गायनशाला, दानशाला, विवाह वाला घर, जिन घरों में प्रवेश करने का निषेध हो, आगे रक्षक खड़ा हो और जहाँ प्रत्येक व्यक्ति न जा सकता हो वहाँ अथवा ऐसे घरों में न जावें। दरिद्रकुलों में एवं आचारहीन सम्पन्न कुलों में भी न जावें। द्वार की सांकल अथवा कपाट बन्द हों तो उन्हें खोल कर प्रवेश न करें; बालक, बछड़ा, कुत्ता एवं मेढ़ा आदि का उल्लंघन करके न जावें; बीज, पुष्प एवं फूलादि पर पैर रख कर न जावें। तत्काल लीपी हुई अथवा एकदम गीली भूमि पर न जावें, जिस घर पर अन्य भिक्षार्थी भिक्षा के लिये ही खड़े हों उन घरों में प्रवेश न करें। जिस परिवार