________________
मरणकण्डिका - ३४५
अर्थ - परिग्रह ग्रहण नहीं करने पर अथवा परिग्रह का सर्वदा त्याग कर देने पर मुनिजनों के समस्त दुख नष्ट हो जाते हैं, सुख-शान्ति की पुष्टि होती रहती है एवं अनेक कर्मों के बन्धन टूट जाते हैं अतः संयत मुनि के लिए परिग्रह सर्वथा हेय है। चतुर मनुष्यों द्वारा भी परिग्रह सर्वदा त्याज्य है।।१२४१ ।। इस प्रकार परिग्रहत्याग नामक पाँचवें महाव्रत का वर्णन पूर्ण हुआ॥
महाव्रत शब्द की निरुक्ति एवं अन्वर्थता साधयन्ति महार्थं यन्महद्भिः सेवितानि यत्।
महान्ति यत्स्वयं सन्तो, महाव्रतान्यतो विदुः ।।१२४२॥ अर्थ - क्योंकि ये असंयम के निमित्त से होने वाले नवीन कर्म समूह के निवारण रूप महान् प्रयोजन को साधते हैं या महापुरुषार्थ स्वरूप हैं अत: इन्हें महाव्रत कहते हैं। क्योंकि तीर्थंकर एवं गणधरादि जैसे महापुरुषों के द्वारा इनका आचरण किया जाता है अतः ये महाव्रत हैं। और क्योंकि ये हिंसादि पापों के त्याग रूप होने से स्वयं में महान् हैं अत: इन्हें महाव्रत कहते हैं ॥१२४२ ।।
प्रश्न - महाव्रतरूप परिणाम क्यों और कैसे बनते हैं तथा ये स्वयं में महान् कैसे हैं ?
उत्तर - नोआगमभाव व्रत की अपेक्षा वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम के साथ चारित्रमोह के क्षयोपशम या उपशम या क्षय से जीव के जो हिंसादि निवृत्ति रूप परिणाम बनते हैं कि मैं जीवन पर्यन्त नौ कोटि से हिंसा नहीं करूँगा, असत्य नहीं बोलूँगा, बिना दिया हुआ दाँत साफ करने वाला तृण भी ग्रहण नहीं करूँगा, मैथुन नहीं करूंगा और किंचित् भी परिग्रह स्वीकार नहीं करूंगा। ऐसे ये पाँच महाव्रत हैं। ये महाव्रत हिंसादि पापों से विरतिरूप होने के कारण शुद्ध चिद्रूप स्वरूप होते हैं अत: स्वयं में महान् हैं।
महाव्रतों की रक्षा के उपाय रक्षणाय मता तेषां, निवृत्ती रात्रि-भुक्तित्तः।
राद्धान्त-मातरश्चाष्टी, सर्वाश्चापि च भावनाः ।।१२४३॥ अर्थ - सिद्धान्त में पाँच महाव्रतों की रक्षा के लिए रात्रिभोजन से निवृत्ति, आठ प्रवचन मातृका और सभी भावनाएँ कही गई हैं॥१२४३ ।।
प्रश्न - रात्रिभोजननिवृत्ति क्यों कही गई है ?
उत्तर - रात्रिभोजन करने से जिनेन्द्राज्ञा का लोप होता है। हिंसा होती है, क्योंकि दिन में भी जिनका परिहार कठिन होता है उन बस-स्थावरजीवों का घात रात्रि में भिक्षार्थ भ्रमण करने पर अवश्यमेव होने की सम्भावना होती है, अतः एषणा समिति का पालन नहीं होता । रात्रि में दाता के आवागमन का मार्ग, आहार रखने का स्थान, उच्छिष्ट गिरने का स्थान एवं दाता द्वारा दिये गये आहार का शोधन हो पाना अशक्य है। अत: रात्रिभोजन करने से हिंसा पाप अवश्यम्भावी है और जहाँ हिंसा पाप है वहाँ अन्य चार पाप भी होते हैं, किन्तु रात्रिभोजनत्याग करने से सब व्रत सम्पूर्ण रीत्या सुरक्षित रहते हैं।