________________
मरणण्डिका - २६०
है अतः सदा कार्य होते रहने का प्रसंग प्राप्त हो जायगा, किन्तु पर्याय अपने-अपने कारणों के होने पर ही होती है अतः वह कदाचित् ही सहायक होती है।
जीवाधिकरण के भेद विधिना योग-कोपादि-संरम्भादि-कृतादयः ।
भिदा भवन्ति पूर्वस्य, गुण्यमानाः परस्परम् ।।८४० ।। अर्थ - मनोयोग, वचन योग, काय योग, क्रोध, मान, माया और लोभ, संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ एवं कृत, कारित और अनुमोदना इन सबका परस्पर में गुणा करने पर जीवाधिकरण के एक सौ आठ भेद होते हैं ।।८४०॥
प्रश्न - संरम्भ, समारम्भ एवं आरम्भ ये तीनों इसी क्रम से प्रयुक्त होते हैं या अन्य प्रकार हैं ?
उत्तर - चेतनात्मा की कोई भी क्रिया अर्थात् व्यापार प्रयत्नपूर्वक ही होता है अत: सर्व प्रथम संरम्भ कहा गया है, क्योंकि प्रमादयुक्त प्राणी, प्राणघात आदि के लिए जो प्रयत्न अर्थात् चिन्तनादि करता है उसे संरम्भ कहते हैं। हिंसा आदि साध्य क्रिया के साधनों को एकत्रित करना समारम्भ है, क्योंकि साधनों के अभाव में चिन्तित कार्य सम्पन्न नहीं हो सकते अत: संरम्भ के बाद समारम्भ कहा गया है। साधनों का संचय हो जाने पर कार्य प्रारम्भ कर देना, यह आरम्भ है। किसी भी कार्य को सम्पन्न करने की यही विधि है अत: इन तीनों का उपयोग इसी क्रम से होता है। इन तीनों को योग, कषाय एवं कृत, कारित और अनुमति से गुणा कर देने पर जीवाधिकरण के एक सौ आठ भेद होते हैं।
संरम्भोऽकथि संकल्पः, समारम्भो वितापकः ।
शुद्ध-बुद्धिभिरारम्भः, प्राणानां व्यपरोपकः ।।८४१।। अर्थ - शुद्ध बुद्धि वाले गणघरादि देव हिंसादि कार्य करने के पूर्व मात्र संकल्प को संरम्भ कहते हैं। सन्ताप देने को समारम्भ कहते हैं और कार्य प्रारम्भ कर देने को आरम्भ कहते हैं। यह आरम्भ प्राणों के घात रूप होता है ||८४१॥
अजीवाधिकरण के भेद-प्रभेद निर्वर्तना सनिक्षेपा, संयोगः सनिसर्गकः।
द्वि-चतुर्द्धि-त्रि-भेदा:, स्युद्धितीयस्य यथा-क्रमम् ।।८४२ ।। अर्थ - अजीवाधिकरण के चार भेद हैं निर्वर्तना, निक्षेप, संयोग या संयोजना और निसर्ग । क्रमानुसार निर्वर्तना के दो भेद, निक्षेप के चार भेद, संयोजना के दो भेद और निसर्ग के तीन भेद होते हैं ।।८४२ ।।
निर्वर्तनोपधि हो, दुःप्रयुक्तोऽभिधीयते।
निक्षेपः सहसा-दृष्ट-दुर्दृष्टाप्रत्यवेक्षणौ ॥८४३॥ अर्थ - उपधि निर्वर्तना और शरीर निर्वर्तना के भेद से निर्वर्तना के दो भेद हैं। सहसा निक्षेप, अदृष्ट निक्षेप, दुर्दष्ट निक्षेप और अप्रत्यवेक्षण निक्षेप के भेद से निक्षेप चार प्रकार का है।८४३ ।।