________________
1
अर्थ- जैसे तुष सहित चावल का तुष दूर किए बिना उसके अन्तर मल का शोधन करना अशक्य है। वैसे ही बाह्य परिग्रह के त्याग बिना कषायादि अभ्यन्तर परिग्रह का शोधन करना अशक्य है || १९७६ || उदीयते यदा लोभो, रागः संज्ञा च गारवम् । शरीरी कुरुते बुद्धिं तदादातुं परिग्रहम् ।।११७७ ।।
मरणकण्डिका - ३२७
बाह्य परिग्रह के त्याग की महत्ता
नाभ्यन्तर: ससङ्गस्य, साधोः शोधयितुं मलः । शक्यते सतुषस्येव, तन्दुलस्य कदाचन ॥ ११७६ ।।
अर्थ
- जब लोभ नामक कर्मप्रकृति की उदय उदीरणा होती है, तब लोभ, राग, संज्ञा एवं गारव रूप अशुभ परिणाम होते हैं। तब यह संसारी प्राणी परिग्रह को ग्रहण करने की बुद्धि करता है ॥ ११७७ ॥
प्रश्न - लोभ, राग, संज्ञा एवं गारव के क्या लक्षण हैं और इनका क्या फल है ?
उत्तर - धनादि के गुणों में आसक्ति रूप परिणाम को लोभ कहते हैं। 'यह मेरा है' इस परिणाम का नाम राग है। 'मेरे पास कुछ होता तो अच्छा होता' इस प्रकार के ममत्व परिणाम को संज्ञा कहते हैं और परिग्रह विषयको अलावा की गारज कहते हैं। ये सब परिणाम अशुभ हैं, इन्हीं परिणामों से कर्मबन्ध होता है।
-
अर्थ आगम में दस प्रकार का स्थितिकल्प ( मुनियों का आचरण विशेष ) कहा गया है। उसमें वस्त्रादि परिग्रह के त्यागरूप प्रथम स्थिति कल्प अचेलक्य है। यतः परिग्रह इहलोक और परलोक सम्बन्धी दोषों को लाता है, अतः जो साधुजन दोनों लोक सम्बन्धी दोषों से बचना चाहते हैं, उन्हें दोनों प्रकार के परिग्रह का त्याग कर देना चाहिए । १११७८ ।।
आचेलक्य का अर्थ वस्त्र है, किन्तु इससे सम्पूर्ण परिग्रह के त्याग का निर्देश है
उद्देशामर्शकं सूत्रमाचेलक्यमिति स्थितम् ।
लुप्तोऽथवादि - शब्दोऽत्र, ताल - प्रालम्ब सूत्रवत् ॥ ११७९ ॥
ग्रन्थो लोक-द्वये दोषं विदधाति यतेस्ततः ।
स्थिति - कल्पो मतः पूर्वं चेलादि-ग्रन्थ-मोचनः ।। ११७८ ।।
अर्थ- सूत्र में 'आचेलक्य' पद देशामर्शक है। इस पद में चेल शब्द उपलक्षणरूप है, अतः चेल
वस्त्र के साथ अन्य परिग्रह का निषेध भी हो जाता है। अथवा इस सूत्र में तालप्रलम्ब सूत्रानुसार आदि शब्द का लोप हो गया है ॥ ११७९ ॥
-
प्रश्न स्थितिकल्प किसे कहते हैं और वे कौन-कौन से हैं?
उत्तर- मुमुक्षुओं को जो कार्य नियमतः करना ही चाहिए उसे स्थिति कहते हैं और उसके भेदों को कल्प कहते हैं। यह स्थितिकल्प का अर्थ है। सुस्थितादि नामक पाँचवें अधिकार में निर्यापकाचार्य के आचारवान्, आधारवान् आदि आठ गुण कहे गये हैं। इनमें आचारवान् गुण के अन्तर्गत दश स्थितिकल्पों का कथन किया